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________________ 54 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 1 लगा रहता था । अजातशत्रु के पुत्र हुए अश्वसेन और अश्वसेन के पार्श्वनाथ । पार्श्वनाथ की माता का नाम था वामा तथा पत्नी का नाम प्रभावती । कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ इक्ष्वाकुवंशी राजा अश्वसेन के पुत्र थे । इनके पिता काशी के राजा थे । पार्श्वनाथ ने वहीं आश्रमपद नामक उपवन में साढ़े तीन दिन तक उपवास करने के पश्चात् संन्यास ग्रहण कर लिया और ८३ दिनों के गहन चिन्तन के उपरान्त इन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ । इनके ८ गण तथा ८ गणधर थे, जिनके नाम क्रमशः (१) शुभ, (२) आर्यघोष, (३) वसिष्ठ, (४) ब्रह्मचारिन्, (५) सौम्य, (६) श्रीधर, (७) वीरभद्र और (८) यसस कहे गये हैं । जैन अनुश्रुतियों के अनुसार पार्श्वनाथ ने १०० वर्ष की आयु में सम्मेद पर्वत पर कैवल्य प्राप्त किया । इन्होंने अपने धर्म के लिए चार प्रमुख सिद्धान्तों— ( १ ) अहिंसा, (२) सत्य, (३) अस्तेय और (४) अपरिग्रह का निरूपण किया था । " जैनधर्म के २४वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर का जन्म सम्भवतः ई. पूर्व ६१८ में वैशाली के क्षत्रिय कुण्डग्राम में, कश्यपगोत्रीय क्षत्रिय - परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम सिद्धार्थ एवं माता का नाम त्रिशला था । इनके कुल को ज्ञातृक कुल या नायकुल भी कहा जाता था। इनकी माता त्रिशला वैशाली के गणाध्यक्ष चेटक की बहन थी । त्रिशला को विदेहदत्ता, प्रियकारिणी तथा महावीर को विदेहजात्य, विदेहकुमार और वेशालीए भी कहा गया है । वर्धमान महावीर का ब्याह यशोदा से हुआ, जिससे अनुज्जा या प्रियदर्शना नामक पुत्री हुई । तीस वर्षों तक गृहस्थ का जीवन व्यतीत करने के बाद, माता-पिता के स्वर्गवास के पश्चात् अपने बड़े भ्राता नन्दिवर्धन की आज्ञा लेकर वर्धमान महावीर ने गृह त्याग दिया। 'आचारांगसूत्र' के अनुसार महावीर ने अपने साथ चल रहे लोगों को शान्दवन से लौटाकर, कम्मार ग्राम में ठहरकर एक अटल तपस्वी की तरह ध्यान लगाया। इसके बाद एक वर्ष तक वस्त्र धारण किये रहे, फिर उसे खोलकर सुवर्णबालुका नदी में फेंक दिया। पात्र त्याग कर करपात्री हो गये । बारह वर्षों की कठिन तपस्या के बाद जम्भिका ग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर शालवृक्ष के नीचे इन्हें कैवल्य (ज्ञान) की प्राप्ति हुई } कहा गया है कि तपस्या के काल में लोगों ने वस्त्रत्यागी महावीर को पागल कहा, गालियाँ दीं, चिढ़ाया, इनपर कुत्ते छोड़े, दण्डों, मुक्कों और लातों का प्रहार किया । लाढ़ गाँव के लोगों ने तो इन पर और भीषण अत्याचार किया । इनकी तपस्या में भारी विघ्न उत्पन्न किया । ज्ञानप्राप्ति के बाद वर्धमान महावीर नालन्दा आये, जहाँ इन्हें गोशाल नामक एक सहयोगी मिला। कोल्लक सन्निवेश (कोलग्गा) नामक स्थान पर ये दोनों ६ वर्षों तक साथ रहे, फिर विचार - वैषम्य के कारण दोनों अलग हो गये। यह गोशाल ही उस काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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