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________________ 46 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 काटकर अंकित किया गया है। अपने दस की संख्या के कारण जनसाधारण के लिए यह विष्णु के दशावतार का अंकन है । इन सभी तीर्थंकरों के साथ एक चँवरधारिणी देखने को मिलती है । इनके लांछन इन प्रतिमाओं के नीचे उत्कीर्ण थे, जो कालान्तर में धूमिल पड़ गये हैं । इन मूर्तियों पर अभिलेख भी खुदा है। इन मूर्तियों को गढ़ने में कलाकारों ने अपनी परिपक्वता नहीं दिखाई है, अतः कला-शैली के आधार पर इनका तिथि-निर्धारण अभी तक नहीं किया जा सका है । परन्तु इस जगह से प्राप्त अभिलेखों में सबसे प्राचीन अभिलेख परम भट्टारक महाराजाधिराज विष्णुगुप्त का है. जो सम्भवतः उत्तर - गुप्त वंश का शासक था, जो सातवीं-आठवीं शती ई. में इस क्षेत्र में शासन कर रहा था। स्टेन (Stein) ने इस पहाड़ी के निकट के तालाब के पास एक जैन तीर्थंकर की प्रतिमा देखी थी, जिसपर उसने एक अभिलेख उत्कीर्ण देखा था, जिसमें वि. संवत् १४४३, अर्थात् वर्ष १३८६ ई.पू. की चर्चा थी। डी. आर पाटिल के विचार में उस अभिलेख का अध्ययन फिर से किया जाना आवश्यक है। 4 जैन धर्म के अनेक प्राचीन अवशेष एवं प्रतिमाएँ पुराने मानभूम जिले (जिसका कुछ हिस्सा आज धनबाद जिला कहलाता है) और सिंहभूम जिले में देखी गई हैं और ये जिले छोटानागपुर - प्रदेश के अन्तर्गत हैं । पी. सी. राय चौधुरी के अनुसार छोटानागपुर क्षेत्र का मानभूम जिला जैन धर्म का एक प्रमुख स्थल था, यह हम आज लगभग भूल गये हैं। उनके अनुसार भारत के किसी भी जिले में इससे प्राचीन जैन पुरावशेष इतनी बिखरी हुई अवस्था में देखने को नहीं मिला है। मानभूम ही वह जिला है, जहाँ उड़ीसा, बिहार एवं बंगाल के सभी यात्रियों को सम्भवत: गुजरना पड़ता था । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उड़ीसा जैन धर्म का प्राचीन काल में एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थल था । खण्डगिरि की पहाड़ियों में जैन स्थापत्य एवं कला के प्रचीन अवशेष आज भी सुरक्षित हैं । उत्कलनरेश खारवेल के हाथीगुम्फाअभिलेख में यह उल्लिखित है कि उसने जिन - प्रतिमा को पुनः उत्कल लाने हेतु मगध पर आक्रमण किया था। बिहार और उड़ीसा के बीच आने-जाने का मार्ग सम्भवतः मानभूम होकर ही गुजरता था । यह एक प्रमुख कारण हो सकता है, जिसके कारण हमें आज भी मानभूम - क्षेत्र के हर हिस्से में ढेर सारे जैन पुरावशेष बिखरे पड़े मिलते हैं । कहा जाता है कि जब महावीर इस धर्म के प्रचार हेतु यात्रा कर रहे थे तब वह 'साफा' अथवा 'सफ' क्षेत्र में अपने धर्म प्रचार के लिए आये थे । उस क्षेत्र में आदिवासी बहुतायत संख्या में थे और वह भगवान् महावीर की बात सुनने को तैयार नहीं थे । यही नहीं, उन्होंने भगवान् महावीर को अपमानित भी किया । परन्तु महावीर उनके इस व्यवहार सेक्षुब्ध नहीं हुए और अपने धर्म की बातें उन्हें समझाने का प्रयत्न करते रहे । अन्त में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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