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________________ 42. Vaishali Institute Research Bulletin No.8 उपलभ्य हैं। ‘हरिवंशपुराण' में बलि और विष्णुकुमार की कथा मिलती है । 'कथाकोश' (हरिषेण) के अनुसार मिथिला के पद्मरथ, सुधर्म गणधर से प्रभावित तथा तीर्थंकर वासुपूज्य से दीक्षित होकर उनके गणधर बन गये (बोधचक्र : सं. डा. मौन : डा. रामप्रवेश)। 'आदिपुराण' (भगवज्जिनसेनाचार्य) के अनुसार मल्लिनाथ और नेमिनाथ ऋषभदेव के वंशज थे। इन जैन तीर्थंकरों के अहिंसामय उपदेशों ने मिथिलापुरी के जनमानस को उद्वेलित कर दिया था। डा. उपेन्द्र ठाकुर ने ('स्टडीज इन जैनिज्म ऐण्ड बुद्धिज्म इन मिथिला) इस सन्दर्भ के तथ्यों का विशेष अध्ययन प्रस्तुत किया है। डॉ. जनार्दन मिश्र (भारतीय प्रतीक-विद्या) ने ग्वालियर से प्राप्त जैन तीर्थंकर नेमिनाथ की प्राचीन प्रतिमा का उल्लेख किया है, जिसके मस्तक पर त्रिशक्ति का प्रतीक त्रिच्छत्र तथा मस्तक के पीछे प्रभामण्डल के रूप में धर्मचक्र बना है। आधुनिक शोध-बोध के अनुसार सांस्कृतिक जनपद-विदेह और उसकी मिथिलापुरी जैनसन्दर्भो में भी चर्चित रही है। श्री बलभद्र जैन (भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, भाग २) ने मिथिलापुरी के जैन सन्दर्भो की विस्तृत चर्चा की है। 'मज्झिमनिकाय' के अनुसार जनकवंश के अन्तिम राजा कराल जनक बुद्ध और महावीर के समकालीन थे। विदेह की राज्यक्रान्ति के बाद कराल जनक के अन्त के साथ बज्जीसंघ में विदेह के अन्तर्भुक्त हो जाने से बज्जी-विदेह की राजधानी वैशाली में केन्द्रित हो गई (मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहास : प्रो. राधाकृष्ण चौधरी)। राजशक्ति वैदेहों के हाथ में थी। गणपति चेटक तथा सिंह सेनापति वैदेह थे। तीर्थंकर महावीर की माँ विदेहदत्ता त्रिशला चेटक की बहन थी। इस वैवाहिक सम्बन्ध ने बज्जी-विदेह की राजनीतिक शक्ति को सुदृढ़ बनाया। त्रिशला और ज्ञातिक कुशल राजा सिद्धार्थ पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। बारह वर्षों की कठिन तपस्या के बाद वर्धमान को ऋजुपालिका के उत्तरी तट पर कैवल्य-ज्ञान प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् वे अर्हत्, जिन, निर्ग्रन्थ और महावीर कहलाये । वर्धमान महावीर ने कौशल, मगध, विदेह आदि जनपदों में अपना धर्मोपदेश दिया। जैनग्रन्थों के अनुशीलन के अनुसार महावीर ने मिथिलापुरी में छह वर्षावास व्यतीत किया था। मिथिलापुरी से सटे बाहर वायव्य कोण में अवस्थित मणिभद्र चैत्य में ठहरा करते थे—“तोसेण मिहिलाए नयरीस बहिया उत्तर-पुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं मणिभदं णाम चेइए।" वर्धमान महावीर से पूर्व पार्श्वनाथ भी ज्ञान-प्राप्ति के बाद मिथिलापुरी गये थे। मिथिलापुरी में जिनमे मल्लिनाथ का प्रतीक घट तथा चैत्यवृक्ष अशोक और नेमिनाथ का प्रतीक नीलकमल और चैत्यवृक्ष बिल्व था। मल्लिनाथ को एकमात्र महिला तीर्थंकर कहा गया है। (मिथिलापुरी का अभिज्ञान : प्रो. उपेन्द्र झा)। मिथिलापुरी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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