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________________ जैन दर्शन में आत्मतत्त्व : एक विश्लेषण 249 पंचेन्द्रिय जीवों के चार वर्ग हैं—देव, नारक, मनुष्य और तिर्यञ्च । पहले दो वर्गों में तो सभी के मन होता है और शेष दो वर्गों में से उन्हीं को होता है, जो गर्भोत्पन्न हों। सारांश यह है कि पंचेन्द्रिय में सब देवों, सब नारकों, गर्भज मनुष्यों तथा गर्भज तिर्यंचों के ही मन होता है। जीवों के शरीर का प्रकार : 'औदारिक वैक्रियाऽऽहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि'२१ अर्थात् शरीर के पाँच प्रकार है-औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण। (क) औदारिक शरीर : उस शरीर को कहते हैं, जो शरीर जलाया जा सकता है या जिसको छेदा-भेदा जा सकता है। सभी मनुष्यों तथा पशुओं का भौतिक शरीर इसी प्रकार का शरीर है। (ख) वैक्रियिक शरीर : वह शरीर है, जो अपना रूप बदलता रहता है। कभी छोटा, कभी बड़ा, कभी पतला, कभी मोटा तो कभी बृहद् रूप धारण कर लेता है। कभी एक के रूप में दीखता है, तो कभी अनेक में। इस प्रकार का इच्छानुसार परिवर्तन शरीर, नारक तथा देवों को होता है। (ग) आहारक शरीर : मुनियों के शरीर हैं, जो चौदह पूर्वो को भली भाँति जानते हैं। स्पष्ट है कि इस श्रेणी के शरीर, योगियों या अध्यात्मिक पुरुषों को ही प्राप्त होते हैं। (घ) तैजस शरीर : सांसारिक जीवों के उन शरीरों का बोध कराते हैं, जो तैजस वर्गणा (पुद्गल की शक्ति) से निर्मित होते हैं, तथा भोजन आदि को पचाने तथा दीप्ति के हेतु होते हैं। (ङ) कार्मण शरीर : यह कर्मसमूह ही है। संसारी जीवों का कार्मण शरीर कार्मण वर्गणा से निर्मित होता है। जीव और गति : जैनदर्शन, पुनर्जन्म में विश्वास करता है। इस सिद्धान्त में विश्वास करनवालों की यह मान्यता है कि कोई भी जीव अपने पूर्व शरीर को छोड़कर जब नया शरीर धारण करता है, तब वह इस क्रम में सदा गतिमान रहता है । गति की ही बदौलत जीव, एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रविष्ट होता है। गति दो प्रकार की बतायी गयी है—एक सरल और दूसरा वक्र । सरल (सीधी) गति में जीव को एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने में प्रयत्न नहीं करना पड़ता है । सीधी गति ही जीव की स्वभाविक गति है। एक शरीर को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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