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________________ जैन दर्शन में आत्मतत्त्व : एक विश्लेषण डॉ. शैलेन्द्र कुमार राय संसार में नाना प्रकार की वस्तुओं और उनकी अवस्थाओं के दर्शन होते हैं। दृश्यमान जगत् को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-चेतन और अचेतन । पदार्थों की चेतनता का कारण उनमें व्याप्त, किन्तु इन्द्रियों के अगोचर वह तत्त्व है, जिसे जीव या आत्मा कहते हैं। प्राणियों के अचेतन-तत्त्व से निर्मित शरीर के भीतर उससे स्वतन्त्र इस ‘आत्मतत्त्व' के अस्तित्व की मान्यता यथार्थतः भारतीय तत्त्वज्ञान की अत्यन्त प्राचीन एवं मौलिक शोध है। यह प्रायः समस्त वैदिक एवं अवैदिक दर्शनों ने स्वीकार किया है। चार्वाक दर्शन : चार्वाक दर्शन केवल एकमात्र ऐसा दर्शन है, जिनमें जीव या आत्मा की सत्ता शारीरिक-भौतिक तत्त्वों से पृथक् अन्य सत्ता नहीं मानी गई है। इन दर्शनों के अनुसार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जैसे जड़ पदार्थों के संयोग-विशेष से इस मानव-शरीर का निर्माण हुआ है और जो स्वयं एक दूसरे भौतिक तत्त्व के सहयोग से यन्त्रवत् चलता रहता है। इस दर्शन का विश्वास है कि इस मानव या अन्य प्राणियों के शरीर में जड़ तत्त्वों के सिवा अन्य कोई अभौतिक पदार्थ नहीं है, जो प्राणियों की उत्पत्ति के समय इसमें स्थान पाती हो और मरणोपरान्त इसे त्यागकर अन्यत्र चली जाती हो। इस दर्शन के अनुसार जगत् में केवल एकमात्र अजीव तत्त्व ही है, किन्तु भारतवर्ष में यह जड़भाव की परम्परा पनप नहीं सकी। वैदिक एवं ईश्वरवादी दर्शन : वैदिक एवं ईश्वरवादी दर्शनों में आत्मा की अमरता को स्वीकार किया गया है। सांख्य और वेदान्तदर्शन, आत्मा को कूटस्थ नित्य मानते हैं तथा वैशेषिक, नैयायिक एवं नव्य-मीमांसक आत्मा को एकान्तनित्य मानते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है : न जायते प्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ * अध्यक्ष,प्राकृत विभाग,एस.बी.ए.एन. कालेज,दरहेहा-लारी,जहानाबाद (मगध विश्वविद्यालय, बोधगया),बिहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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