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________________ 182 Vaishali Institute Research Bulletin No.8 से तुलनीय माना जा सकता है । २३ इसी प्रकार आजीविकों द्वारा प्रस्तुत आठ अवस्थाओं से भी इनकी तुलना की जा सकती है। यद्यपि इस तुलनात्मक अध्ययन के सम्बन्ध में अभी गहन चिन्तन की अपेक्षा है, इस सन्दर्भ में विस्तृत चर्चा अगले किसी लेख में करेंगे। सन्दर्भ-स्रोत : १. कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च चउछस जीवठ्ठाण पण्णत्ता, तं जहा-गिच्छादिट्ठी, सासायणसम्मदिट्छी, सम्मामिच्चादिट्छी, अविरयसम्मोदिट्ठी, विरयाविरए, पमत्तसंजए, अप्पमत्तसंजए, निअट्टिबायरे, अनिअट्टिबायरे, सुहमसंपराएउपसामए वा खवए वा, उवसंतमोहे, खीणमोहे, सजोगीकेवली, अयोगी केवली । __-समवायांग (सम्पा. मधुकर मुनि), १४.९५ २. मिच्छादिट्ठी सासायणे य तह सम्ममिच्छादिट्ठी य। अविरयसम्मदिट्ठी विरयाविरए पमत्ते य॥ तत्तो य अप्पमत्तो नियट्टिअनियट्टिबायरे सुहुमे। उवसंतखीणमोहे होई सजोगी अजोगी य ॥ --नियुक्तिसंग्रह (आवश्यकनियुक्ति), पृ. १४९ ३. चोद्दसहिं भूयगामेरि...बीसाए असमाहिठाणेहि ॥ . -आवश्यकनियुक्ति (हरिभद्र), भाग २, प्रका. श्रीभेरूलाल कन्हैयालाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, मुम्बई, वीर सं. २५०८; पृष्ठ १०६-१०७. ४. तत्थ इमातिं चोद्दस गुणट्ठाणाणि....अजोगिकेवली नाम सलेसीपडिवन्नओ, सो य तीहिं जोगेहिं विरहितो जाव कखगघङ इच्चेताई पंचहस्सक्खराईं उच्चरिज्जति एवतियं कालमजोगिकेवली भवितूण ताहे सव्वकम्मविणिमुक्को सिद्ध भवति । -आवश्यकचूर्णि (जिनदासगणि), उत्तर भाग, पृ. १३३-१३६, रतलाम, स. १९२९ ई. एदेसि चेव चोद्दसण्हं जीवसमासाण परूवणट्ठदाए तत्थ इमाणि अट्ठ अणि-योगद्धाराणि णायव्वाणि भवंति मिच्छादिट्ठि सजोगकेवली अजोगकेवली सिद्धा चेदि। -षटखण्डागम (सत्प्ररूपणा), पृ. १३४-२०१ प्रका. जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर (पुस्तक १, द्वि. सं., सन् १९७३ ई.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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