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________________ 154 : Vaishali Institute Research Bulletin No.8 'अध्यात्म-फाग' में कवि ने आध्यात्मिक वसन्त में सुरुचि की सुगन्ध पर मन-मधुकर के मँडराने, सुमति-कोकिल के गाने, जड़ता-जाड़ के निःशेष हो जाने, माया-रात्रि के लघु हो जाने, संशय-शिशिर के सम्राट हो जाने आदि की बातें की हैं। 'तेरह कालिया' में तेरह ऐसे ठगों का वर्णन है, जो आत्मराज्य की सुख-शान्ति में व्यवधान उत्पन्न करने में सक्रिय रहते हैं और रत्नत्रय का अपहरण कर जीवात्मा को तीन तेरह कर देते हैं। वे ठग हैं : जूआ आलस शोक भय, कुकथा कौतुक कोह। कृपण बुद्धि अजानता, भ्रम, निद्रा, भय, मोह ॥ (तेरहकाठिया, छन्द ३) 'नाटक समयसार' आचार्य कुन्दकुन्द की प्राकृत-रचना 'समयसार' पर आधारित होकर भी सर्वथा स्वतन्त्र ग्रन्थ है। अनादिकाल से इस हृदय में भ्रमरूप महा अज्ञान की विस्तृत नाट्यशाला स्थापित है । एकमात्र पुद्गल वहाँ सतत नृत्य करता रहता है । सम्यक् आत्मा इस नाटक का प्रेक्षक है। आदि-आदि। ___ 'खटोलनागीत" में कवि रूपचन्द ने खटोले के रूपक द्वारा जीवात्मा को अपनी निद्रा त्याग शिव-देश के लिए प्रस्थान करने की शिक्षा दी है। 'चूनड़ी भगवतीदास-रचित ३५ पदों का लघुरूपक काव्य है । जैन-साहित्य में चूनरी बहुत लोकप्रिय विधा रही है और इसपर अनेक कवियों ने रचनाएँ की हैं। चूनरी का अर्थ होता है विभिन्न रंगों से निर्मित स्त्रियों के ओढ़ने का दुपट्टा । पं. भगवतीदास रचित 'चूनड़ी' में शिव-सुन्दरी (मुक्तिबद्ध) भगवान् जिनेन्द्र से ऐसी चूनड़ी मँगा देने की प्रार्थना करती है, जो सम्यक्त्व के सूत से निर्मित हो, ज्ञान के जल में रँगी गई हो तथा पच्चीस प्रकार के मलों को दूर कर, अहिंसा की भूमि पर रखकर नियम और संयम की जिसपर इश्तिरी की गई हो। 'चेतनकर्मचरित भैया भगवतीदास की उत्कृष्टतम रचना है। इसमें नायक चेतन और प्रतिनायक मोह के संघर्ष की कथा बड़े सुन्दर रूप में प्रस्तुत की गई है : सूर बलवंत मदमत्त महामोह के, निकसि सब सैन आगे जु आये। मारि घमासान महाजुद्ध बहुक्रुद्ध करि, एकतें एक सातो सवाये ॥ वीर सुविवेक ने धनुष ले ध्यान का, मारिके सुभट सातों गिराये। कुमुक जो ज्ञान की सैन सब संग धसी, मोह के सुभट मूर्छा सवाये ॥ (चेतनकर्मचरित, छन्द १२४)॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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