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________________ 152 . Vaishali Institute Research Bulletin No.8 - 'प्रबोधचन्द्रोदय' के पश्चात् की दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति है यशपाल-रचित 'मोहपराजय'। इसका आधार जैन धर्म एवं दर्शन है। ___ महाकवि वेंकटनाथ का 'संकल्प-सूर्योदय' कलात्मकता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें कवि ने विशिष्टाद्वैत के सिद्धान्तों का प्रतिपादन बड़ी मार्मिकता से किया महाप्रभु चैतन्य के जीवन-वृत्तान्त को आधार बनाकर सन् १५७९ ई. में कविकर्णपूर ने 'चैतन्यचन्द्रोदय' की रचना की। यद्यपि नाटक के गायक महाप्रभु चैतन्य हैं, तथापि इसमें वैराग्य, भक्ति, अधर्म आदि अमूर्त भावनाओं का पात्रीकरण किया गया है। १६वीं शताब्दी में भूदेव शुक्ल ने 'धर्मविजय' नाटक की रचना की। इसके नायक धर्मराज एवं प्रतिनायक अधर्मराज हैं। धर्मराज के सैनिक हैं-अहिंसा, सत्य, दान, तप, दया, शान्ति आदि। अधर्म का पुत्र वर्णसंकर और पुत्रवधू नीचसंगति है। १८वीं शताब्दी में श्रीकृष्णदत्त मैथिल ने 'पुरंजनचरितम्' नामक रूपक शैली का नाटक लिखा। इस नाटक का आधार श्रीमद्भागवत और प्रतिपाद्य विष्णुभक्ति है। १८वीं शताब्दी में ही आनन्दराय भरवी ने 'विद्या-परिणय' तथा 'जीवानन्दनम्' नामक दो रूपक नाटक लिखे। प्रथम में जैन, चार्वाक आदि मृत पात्र के रूप में उपस्थित हैं। द्वितीय ग्रन्थ में आयुर्वेद के सिद्धान्तों का साहित्यिक प्रतिपादन हुआ है । ग्रन्थ के नायक विज्ञानशर्मा और प्रतिनायक राजयक्ष्मा हैं। सन्निपात, गुल्म, कुष्ठ आदि रोग पात्र के रूप में आये हैं। डॉ. दशरथ ओझा ने अपने 'हिन्दी नाटक उद्भव और विकास' में 'अमृतोदय', 'श्रीदामाचरित' तथा 'यतिराज' नाटकों का भी उल्लेख किया है। हिन्दी में रूपक-शैली के काव्यों का विकास : हिन्दी में दो प्रकार के रूपक-काव्यों का विकास हुआ-अनुवाद तथा स्वतन्त्र । इनके अतिरिक्त कुछ ऐसी भी रचनाएँ हैं, जो संस्कृत के ग्रन्थों से प्रभावित तो अवश्य हैं, किन्तु उनमें कवि की अपनी प्रतिभा का भी योगदान है। संस्कृत के जिन ग्रन्थों का अनुवाद हुआ, उनमें दो रचनाएँ प्रमुख हैंप्रबोधचन्द्रोदय और ज्ञानसूर्योदय। इनमें प्रथम अजैन है तथा दूसरी जैन। यों 'प्रबोधचन्द्रोदय' के बीस से अधिक अनुवाद हुए हैं, किन्तु सबसे प्राचीन छायानुवाद (सन् १५४४ ई) मल्हकवि की है, जो ब्रजभाषा-पद्य में है तथा जिसमें दोहा और चौपाई का प्रयोग है। यद्यपि सम्पूर्ण अनुवाद पद्य में है, किन्तु पद्य में ही नाटकीयता भर देने की चेष्टा कवि ने की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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