SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 76 Vaishali Insitute Research Bulletin No. 8 शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों के भ्रमिका- वितानों पर जैन परम्परा के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के जीवनदृश्य भी द्रष्टव्य हैं। इन दृश्यों में नेमिनाथ के पंचकल्याणकों के अतिरिक्त नेमिनाथ एवं कृष्ण के मध्य हुए शक्ति-परीक्षण तथा नेमिनाथ के विवाह के प्रसंग विशेष महत्वपूर्ण हैं । शान्तिनाथ मन्दिर के दृश्य तीन आयतों में विभक्त हैं। बाहरी आयत में नेमिनाथ के पूर्वभव, च्यवन तथा उनके माता-पिता का अंकन है। दूसरे आयत में शिशु जन्म तथा इन्द्र द्वारा उसके जलाभिषेक के सन्दर्भ हैं । दूसरे आयत में ही नेमिनाथ के विवाह का भी अंकन है । इस दृश्य में नेमिनाथ रथ पर आरूढ़ होकर विवाह स्थल की ओर जा रहे हैं। आगे शूकर, मेष, मृग जैसे पशुओं को एक पिंजरे में बन्द दिखाया गया है । यहाँ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के उल्लेख के विपरीत नेमिनाथ और राजीमती को विवाह मण्डप में एक साथ खड़े दिखाया गया है । तीसरे आयत में नेमिनाथ की दीक्षा तथा तपस्या का अंकन है । इस दृश्य में नेमिनाथ को वस्त्राभूषण त्यागकर केश- लुंचन करते तथा कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े दिखाया गया है । पश्चिम की ओर नेमिनाथ का समवसरण है, जिसमें गज सिंह, मयूर - सर्प जैसे परस्पर वैर-भाव वाले जीव-जन्तु भी उत्कीर्ण हैं । 1 महावीर - मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के वितान पर कृष्ण एवं नेमिनाथ के शक्ति परीक्षण, नेमिनाथ के विवाह तथा दीक्षा के दृश्य हैं। नेमिनाथ और कृष्ण के शक्ति-परीक्षण में नेमिनाथ को विजेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो ब्राह्मण धर्म पर जैनधर्म की श्रेष्ठता का सूचक है। अधिकांश दृश्यों के नीचे लेख भी हैं। दृश्यावली के दक्षिणी छोर पर श्रीषेण (पिता) एवं अन्य अधीनस्थ शासकों के साथ राजा शंख (नेमिनाथ का पूर्वभव) की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं । लेख में 'अपराजित विमानदेव' अंकित है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि शंख का जीव अपराजित विमान से च्युत होकर शिवादेवी के गर्भ में आया था । उत्तर की ओर नेमिनाथ के च्यवन और जन्म का अंकन है। आगे कृष्ण और नेमिनाथ के मध्य हुए शक्ति परीक्षण का अंकन है । .१६ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि कदाचित् नेमिनाथ घूमते हुए कृष्ण की आयुधशाला में पहुँच गये जहाँ उन्होंने कृष्ण के आयुधों को देखा । उत्सुकतावश जब उन्होंने शंख उठाना चाहा तो आयुधशाला के रक्षक ने उन्हें ऐसा करने से रोका तथा कहा कि आप द्वारा यह शंख बजाना तो दूर उठाना भी सम्भव नहीं है । इतने में नेमिनाथ I शंख बजा दिया । यह सूचना पाकर कृष्ण अत्यन्त भयभीत हुए और उनके शक्तिपरीक्षण की इच्छा व्यक्त की । नेमिनाथ ने द्वन्द्व-युद्ध के स्थान पर एक दूसरे की भुजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy