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________________ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में वर्णित तीर्थंकर डॉ. शुभा पाठक 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' श्वेताम्बर-परम्परा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चरित ग्रन्थ है, जिसकी रचना हेमचन्द्र ने १२वीं शती ई. के उत्तरार्ध में अपने आश्रयदाता कुमारपाल चौलुक्य के अनुरोध पर जनकल्याण के उद्देश्य से की थी।' आचार्य हेमचन्द्र गुजरात के एक लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् और जैन परम्परा के आचार्य थे। प्रस्तुत ग्रन्थ में जैन परम्परा के ६३ शलाकापुरुषों (श्रेष्ठ जनों या चरितों) का जीवन चरित विस्तारपूर्वक वर्णित है। ६३ शलाकापुरुषों में देवाधिदेव २४ तीर्थंकरों या जिनों के अतिरिक्त, १२ चक्रवर्तियों, ९ बलदेवों, ९ वासुदेवों एवं ९ प्रतिवासुदेवों का उल्लेख हुआ है। गुजरात में जैनधर्म और कला के विकास में चौलुक्य-राजवंश (ल. ११वीं से १३वी. शती ई) का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । चौलुक्य शासकों के काल में कई जैन मन्दिरों का निर्माण हुआ, जिनपर प्रभूत संख्या में तीर्थंकरों एवं अन्य जैन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनीं। इन मन्दिरों में गुजरात के बनासकाठा जिले में स्थित कुम्भरिया का जैन मन्दिर समूह सर्वप्रमुख है। ये मन्दिर ११वीं से १३वीं शती ई. के हैं तथा सम्भवनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीर को समर्पित हैं। इन मन्दिरों के वितानों पर ऋषभनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर (क्रमश: प्रथम, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवें और चौबीसवें) के जीवनदृश्यों का विस्तृत अंकन हुआ है। इनमें जिनों के पंचकल्याणकों (च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य, निर्वाण) के अतिरिक्त इनके जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं को भी शिल्पांकित किया गया है। यह शिल्पांकन पूरी तरह त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के विवरण पर आधारित है। तीर्थंकरों के जीवन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण घटनाओं में शान्तिनाथ द्वारा पूर्वभव में कपोत की प्राणरक्षा-हेतु शरीर-दान की कथा, नेमिनाथ के चचेरे भाई कृष्ण की आयुधशाला में नेमिनाथ का शौर्य-प्रदर्शन, नेमिनाथ के विवाह हेतु प्रस्थान तथा विवाह किये बिना ही मार्ग से लौटकर दीक्षा-ग्रहण तथा पार्श्वनाथ और महावीर के उपसर्गों के विस्तृत दृश्यांकन आदि प्रमुख हैं। ११वीं शती ई. के शान्तिनाथ एवं महावीर-मन्दिरों की पश्चिमी भ्रमिका के समतल वितानों पर प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के जीवनदृश्य उत्कीर्ण हैं । शान्तिनाथ मन्दिर का दृश्यांकन चार आयतों में विभक्त है । बाहरी आयत में ऋषभनाथ के माता-पिता मरुदेवी * ४७, रवीन्द्रपुरी कालोनी, वाराणसी - २२१ ००५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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