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________________ xlviii क्योंकि इस प्रयोगात्मकता के द्वारा ही हम वैयक्तिक और सामाजिक जीवन के संघर्षों एवं वैचारिक विवादों का निराकरण कर सकते हैं। अनेकांतवाद को मात्र जान लेना या समझ लेना ही पर्याप्त नहीं है, उसे व्यावहारिक जीवन में जीना भी होगा और तभी उसके वास्तविक मूल्यवत्ता को समझ सकेंगे। हम देखते हैं कि अनेकांत एवं स्याद्वाद के सिद्धान्त दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं पारिवारिक जीवन के विरोधों के समन्वय की एक ऐसी विधायक दृष्टि प्रस्तुत करते हैं जिससे मानव जाति को संघर्षों के निराकरण में सहायता मिल सकती है। _अन्त में मैं श्री नवीनभाई शाह और मैरे उन सभी विद्वत् साथियों, जिनके सहयोग से यह उपक्रम पूर्ण हो सका, धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। ग्रन्थ के सम्पादन के समय प्रस्तुत प्रकाशन के पृष्ठों की सीमा रेखा के कारण कुछ निबन्धों और निबन्ध अंशों को हम समाहित नहीं कर सके इसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। इस सम्पूर्ण उपक्रम में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक मेरे सहयोगी रहे डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय का विशेष आभारी हूँ जिनके सहयोग से यह उपक्रम पूर्ण हो सका। इसके सम्पादन, प्रूफ-संशोधन और प्रकाशन में उनके द्वारा किया गया श्रम सराहनीय है। इन सबके अतिरिक्त पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक डॉ० भागचन्द्र जैन भास्कर एवं संचालकद्वय श्री भूपेन्द्रनाथ जी जैन एवं श्री इन्द्रभूति बरड़ और विद्यापीठ परिवार के सभी सदस्य भी धन्यवाद के पात्र हैं जिनके प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग से प्रस्तुत प्रकाशन हो रहा है। श्रुतपंचमी, १९९९ डॉ० सागरमल जैन ८२, नई सड़क, शाजापुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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