SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 542
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त की उपयोगिता 477 गहराइयों- और विस्तारों से समझना हो तो उसके समग्र पक्ष/दृष्टिकोण देखने चाहिए और फिर क्रमश: उसका सापेक्ष-कथन करना चाहिए। अनेकान्त एक ऐसी चितंन प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत हम संसार के तमाम पदार्थों को बहुआयामी मानते हैं और मानते हैं कि स्यादवाद के द्वारा हम उन समस्त पहलुओं की व्याख्या कर सकते हैं। अतः अनेकान्त वस्तु की विशेषता है और स्याद्ववाद इन विशेषताओं को समझने की कुंजी।। अनेकान्त जैन दर्शन की चिन्तन प्रक्रिया की आधारशिला है। जैन धर्म-दर्शन की यह विशेषता है वह किसी कथन को अन्तिम न मानकर सापेक्ष मानता है और सम्भाव्य जानकारी के लिये द्वार खुले रखता है। उसकी दृष्टि एकांगी नहीं अपितु सर्वांग है। यही कारण है कि उसके समन्वय की एक शान्त-निश्चल धारा प्रवाहित है। जैन दर्शन मानता है कि संसार में ऐसी कोई वस्तु, स्थिति, व्यक्ति या अनुभूति नहीं है, जिसका निरपेक्ष कथन किया जा सके। जब भी कोई कथन किया जायेगा-सापेक्ष (In relation) ही होगा। उसकी मान्यता है कि ऐसा कुछ भी नहीं है इस लोक में जिसके सभी पहलुओं का युगपत कथन संभव हो। सब जानते हैं कि एक ही वस्तु के नाना पक्ष/पहलू होते हैं, जिन्हें एक साथ कहना संभव नहीं है। गलतफहमी कलह की मां है। इसका जब हम मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि इसकी शरीर रचना में एकान्तिक यानि पूर्वाग्रह युक्त चिन्तन का ही हाथ अधिक होता है। प्रायः हम किसी एक कथन को अन्तिम मान कर ही भ्रांति के दलदल में फसते हैं। किन्तु जब हम उस बात पर अनेक अपेक्षाओं, आयामों और कोणों से विचार करने लगते है तो गलतफहमी के स्थान पर प्रगाढ़ मैत्री होने लगती है और हममें एक प्रजातान्त्रिक समझ आने लगती है। हम संभावनाओं को अपनी उदार भुजाओं में समेटने लगते हैं। आंशकाएं तब हमें नहीं तोड़ती हैं। तात्कालिकताएं और आकस्मिकताएं जीवन को अक्सर उजाड़ती रहती हैं, किन्तु अनेकांत और स्याद्वाद न तो किसी कथन को आकस्मिक मानते हैं और न तात्कालिक। इसलिए ये दोनों व्यक्ति की उत्तेजनाओं और भ्रांतियों से रक्षा करते हैं। संक्षेप में हम कहेंगे कि अनेकान्त और स्याद्वाद अपनी अधिकाधिक सम्पूर्णता में व्यवहत होकर एक सुखद प्रजातान्त्रिक जीवन के मंगलाचरण बन सकते हैं। _अनेकान्त वस्तु के व्यक्तित्व को परिभाषित करने का माध्यम है। सभी वस्तुएं अनेकान्तात्मक हैं इस तथ्य को हम अनेकान्त द्वारा ही जान पाते हैं तथा उसी आधार पर जीवन एवं समाज में प्रेम, सद्भाव एवं शक्ति का वातावरण बना सकते हैं और अपने जीवन में सुख शांति का स्रोत बहा सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy