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________________ अनेकान्तवाद एवं आधुनिक भौतिक विज्ञान 469 बारे में निम्नांकित कथन बन | हैं या कर्मों ने आत्मा को | की कमी है, साधनों की सकते हैं : बांध कर संसार में रोक | कमी है,.... इत्यादि। बंधन १. इलेक्ट्रान प्रोटॉन से | रखा है। हमारे जीवन में हम इतने बंधा हुआ है या प्रोटॉन | वस्तुत: दोनों ने | अधिक मान लेते हैं कि इलेक्ट्रॉन से बंधा हुआ है। | एक दूसरे का कुछ नहीं | हम इन कमियों से जकड़ा दोनों एक दूसरे से बँधे हुए | बिगाड़ा है। आत्मा का | हुआ सा अनुभव करते हैं। हैं व हाइड्रोजन परमाणु की | एक प्रदेश भी कर्म | कभी विपरीत रूप से दृष्टि में प्रोटॉन एवं इलेक्ट्रॉन | परमाणुओं एवं शरीर के | भी विचार किया जा दोनों एक साथ होने से उनके साथ रहने से कम ज्यादा | सकता है कि मेरे पास धन एवं ऋण आवेश जुड़ नहीं होता है। आत्मा की कितना समय है या जाने से हाइड्रोजन परमाणु शक्ति में कोई कमी नहीं | कितना धन है या कितने का कुल आवेश शून्य बन | आती है व वह न्याय का | साधन हैं। ज्यों ही हम गया है। न्यारा है। इस शक्ति को | इस दिशा में सोचना शुरू २. इलेक्ट्रॉन की दृष्टि | पहचानकर पुरुषार्थ करने | करेंगे हमें ऐसा लग में प्रोटॉन उसका पड़ोसी है। | पर आत्मा की शक्ति प्रकट | सकता है कि आगे बढ़ने इलेक्ट्रॉन का ऋण आवेश | हो सकती है। यानी आत्मा | एवं लोकोपकारी सत्कार्य थोड़ा भी नहीं बदला है। | को पृथक् पहचानकर मुक्त | करने हेतु हमारे पास बहुत कॉम्पटन विवर्तन | किया जाना संभव है। कुछ है। (Compton rcattering) ___ आज के मनोवैज्ञानिक जैसे प्रयोग द्वारा इलेक्ट्रान कई समस्याएं इसी की स्वतंत्रता सिद्ध होती है। सिद्धान्त द्वारा हल करते ३. इलेक्ट्रॉन की तरह हैं। जहां दो के बीच लड़ाई प्रोटॉन की दृष्टि में प्रोटॉन | हो तो प्रेम का अस्तित्व भी स्वतंत्र है व उसका धन दर्शाते हैं व साधन या आवेश थोड़ा भी नहीं समय की कमी की भावना बदलता है। नाभिकीय से ग्रस्तता हो तो इनकी संलयन (nuclearfusion) प्रचुरता का एहसास कराते जैसी क्रियाओं में प्रोटॉन इस | है। (देखिए फुटनोट कं. प्रकार व्यवहार करता है जैसे १४) इलेक्ट्रॉन से वह स्वतंत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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