SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 466 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda सारणी क्रं. ३ शाश्वत - अशाश्वत विज्ञान अध्यात्म व्यावहारिक जीवन जिसे हम कोयले का उमास्वातिने बताया है। कई नुकसान ऐसे होते हैं जलना कहते हैं उसे | कि१२ जो कई लाभ के दरवाजे भी रसायन शास्त्र की भाषा | सत् द्रव्य लक्षणं। खोलते हैं। कुछ आधुनिक में निम्नांकित रासायनिक | उत्पाद व्यय ध्राव्य युक्तं विद्वान् यहां तक स्वीकारते हैं क्रिया द्वारा व्यक्त करते | सत्। |कि हर हानि में लाभ का बीज अर्थात् द्रव्य में उत्पाद दिखता रहता है। (within C+0.co. +ऊर्जा | एवं नाश होते हुए भी द्रव्य| every adversity there is भौतिक विज्ञान द्वारा | का ध्रुवत्व बना रहता है। / a seed of an equivalent इस क्रिया का विश्लेषण | जन्म, मृत्य भी एक| or greater benefit)१३ करें तो बड़ा विचित्र | सच्चाई है तो आत्मा की लगेगा। जरा पता लगायें | अजरता-अमरता भी एक की कौन जला? कार्बन | परम सच्चाई है। न केवल (C) में ६ प्रोटान, ६ | आत्मा अपितु जड़ भी इसी न्यूट्रान एवं ६ इलेक्ट्रान | अपेक्षा अजर-अमर हैं। थे। आक्सीजन के अणु (o,) में १६ प्रोटॉन, १६ न्यूट्रॉन एवं १६ इलेक्ट्रॉन थे। अब कार्बन डाई आक्साइड (Co,) में २२ प्रोटॉन, २२ न्यूट्रॉन एवं २२ इलेक्ट्रॉन हैं। यानी जलने के पहले भी २२ प्रोटॉन, २२ न्यूट्रॉन एवं २२ इलेक्ट्रॉन थे व जलने के बाद भी २२ प्रोटॉन, २२ न्यूट्रॉन एवं २२ इलेक्ट्रॉन रहते है। तो फिर कौन जला? इसका उत्तर यह है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy