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________________ 454 Multi-dimensional Application of Anekantavāda 'आवश्यकता कम करो' यह प्रतिपादन मानसिक अशांति की समस्या को सामने रखकर किया गया है। 'आवश्यकताओं का विस्तार करो' यह प्रतिपादन मनुष्य की सुख-सुविधाओं को ध्यान में रखकर किया गया है। महावीर ने सामाजिक व्यक्ति के लिए अपरिग्रह का सिद्धान्त नहीं दिया। वह मुनि के लिए सम्भव है। सामाजिक मनुष्य इच्छा और आवश्यकताओं को समाप्त करके अपने जीवन को नहीं चला सकता और उनका विस्तार कर शान्तिपूर्ण जीवन नहीं जी सकता। अत: अनेकान्त जीवन शैली का प्रथम सूत्र होगा इच्छा परिमाण। इच्छा के आधार पर तीन प्रकार के वर्गीकरण बनते हैं- महेच्छा, अल्पेच्छा एवं अनिच्छा। पहला वर्ग उन लोगों का है जिनमें इच्छा का संयम नहीं होता। इस वर्ग वाले महेच्छु एवं महान परिग्रह वाले होते हैं। दूसरा वर्ग जैन श्रावक अथवा अनेकान्त शैली वालों का है जिनमें इच्छा का परिमाण होता है। वे अल्पेच्छु एवं अल्प परिग्रही होते हैं। जहां अनिच्छा वहां अपरिग्रह होता है यह मुनि का वर्ग है। महावीर ने मुनि के लिए अपरिग्रह के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया किन्तु समाज अपरिग्रह से नहीं चलता। अत: सामाजिक मनुष्य के लिए इच्छा परिमाण का व्रत दिया। स्वस्थ समाज संरचना का यह महत्त्वपूर्ण सूत्र है। व्यक्तिगत स्वामित्व का सीमाकरण आवश्यक है। व्यक्ति का जीवन अल्प इच्छा, अल्प संग्रह एवं अल्प भोग से युक्त होना चाहिए। (भोगोपभोग विरमण का व्रत भी स्वस्थ समाज संरचना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है) समाज व्यवस्था में इच्छा परिमाण एवं वैयक्तिक स्वामित्व की सीमा को चरितार्थ करने वाला एक अनूठा प्रयोग पश्चिम में श्री अर्नेष्ट बेडर द्वारा "स्कोट बेडर कम्पनी” को 'स्कोट बेडर कामनवेल्थ' में बदलकर प्रस्तुत किया। इसका विस्तृत विवरण शूमाखर ने “Small is beautiful-Economics as if people Mattered” में प्रस्तुत किया है। जिसका सारांश यही है कि अत्यधिक वैयक्तिक लाभ अर्जन करने की स्थिति में भी श्री अनेष्ट वेडर ने सभी श्रमिकों को कम्पनी का शेयर होल्डर बनाकर अपने वैयक्तिक स्वामित्व का विसर्जन किया और त्याग द्वारा इच्छाओं एवं सञ्चय को सीमित करने का सफल प्रयोग प्रस्तुत किया। श्रावक की आचार संहिता में आगत भोगोपभोग विरमण व्रत भी स्वस्थ समाज का घटक तत्त्व है। जब इच्छा सीमित होती है और भोगोपभोग भी परिसीमित होता है तब प्रामाणिकता, अर्थार्जन के साधनों में शुद्धि आदि अपने आप फलित होते हैं। ये व्रत अनेकान्त दृष्टि के फलित हैं। समाज एवं व्यक्ति के विकास के सूचक हैं। इच्छा परिमाण व्रत में आर्थिक विकास और उन्नत जीवन स्तर की सम्भावनाओं के द्वार बन्द नहीं होते हैं तथा विलासिता के आधार पर होने वाली आर्थिक प्रगति के द्वार भी खुले नहीं रहते। इच्छा परिमाण के निष्कर्ष संक्षेप में इस प्रकार हो सकते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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