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________________ 452 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda जाता है कि विभिन्न समाजों को एक दूसरे से पृथक् करने का आधार उनके सामाजिक सम्बन्धों की ही भिन्नता है। क्षमताओं का होना व्यक्ति की वैयक्तिकता है तथा उनका अभिव्यक्त होना व्यक्ति की सामाजिकता है। अत: व्यक्ति और समाज एक भी हैं और भिन्न भी हैं। व्यक्ति का आधार संवेदन एवं समाज का आधार विनिमय है। संवेदना का विनिमय नहीं हो सकता और विनिमय का सबको समान संवेदन नहीं हो सकता। व्यक्ति, अथवा समाज में से एक को मुख्यता देने से समस्या पैदा होती है। "व्यक्ति वास्तविक, एवं समाज अवास्तविक है" व्यक्तिवादी दार्शनिकों की इस स्वीकृति ने व्यक्ति को असीमित अर्थसंग्रह की स्वतन्त्रता देकर शोषण की समस्या को पैदा किया। "समाज वास्तविक व्यक्ति अवास्तविक" समाजवादी दार्शनिकों की इस मान्यता ने व्यक्ति की वैचारिक स्वतन्त्रता को प्रतिबद्ध करके मानव के यंत्रीकरण की समस्या को पैदा किया। अनेकान्त के आधार पर व्यक्ति एवं समाज की समान एवं सापेक्ष मूल्यवत्ता की स्वीकृति ही इन समस्याओं से मुक्ति प्रदान कर सकती है। अर्थतंत्र में अनेकान्त समाज व्यवस्था के आधारभूत तत्त्व दो हैं - काम और अर्थ। काम की सम्पूर्ति के लिए सामाजिक सम्बन्धों का विस्तार होता है। अर्थ कामना पूर्ति का साधन बनता है। समाज व्यवस्था में महामात्य कौटिल्य ने अर्थ को मुख्य माना है तथा आधुनिक समाज व्यवस्था में भी अर्थ की प्रधानता है। सामाजिक समायोजन में अर्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान में अर्थ व्यवस्था से सम्बन्धित विचारधारा पूंजीवाद, समाजवाद एवं साम्यवाद है। पूंजीवाद व्यक्तिगत सम्पत्ति की धारणा को महत्त्व देकर आर्थिक क्रियाओं को संगठित करता है। "व्यक्तिगत सम्पत्ति का मंत्र रेत को भी सोने में परिवर्तित कर देता है" इस धारणा को आधार मानते हुये पूंजीवाद आर्थिक स्वतन्त्रता, प्रतियोगिता और पूंजी संचय को सदैव प्राथमिकता देता है। पूंजीवाद में means of production (उत्पादन के साधन) पर व्यक्ति विशेष का अधिकार रहता है। समाजवादी आर्थिक व्यवस्था शान्तिपूर्ण एवं संवैधानिक ढंग से व्यक्तिगत पंजी को सार्वजनिक पूंजी में परिवर्तित करने का प्रयत्न करती है। जहां पूंजीवाद व्यक्तिगत, स्वामित्व नियन्त्रण और अधिकार की धारणा पर आधारित है, वहीं समाजवाद सार्वजनिक हित और सार्वजनिक धारणा को महत्त्व देता है। साम्यवादी अर्थव्यवस्था को क्रान्तिकारी समाजवादी आर्थिक व्यवस्था भी कहा जा सकता है। साम्यवाद का सिद्धान्त है कि “लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रत्येक साधन उचित है। साम्यवाद का सिद्धान्त है कि उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का एकाधिकार होना चाहिए और समस्त आर्थिक सेवाएं सार्वजनिक अधिकार में हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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