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________________ समाज में अनेकान्तवाद एवं स्याद्धाद की महत्ता डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल 'अनेकान्त' एवं 'स्याद्वाद' दोनों ही शब्द जिस प्रकार दार्शनिक क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं उसी प्रकार सामाजिक क्षेत्र में भी इन दोनों की व्यापक महत्ता है। ___ अनेकान्तवाद-स्याद्वादपरक नीति को जैननीति के नाम से आचार्य अमृतचन्द्र ने अपने पुरुषार्थसिद्धयुपाय में संबोधित किया है। जैसे ग्वालिन (दही से मक्खन निकालने के लिए) मथानी में संलग्न रस्सी के एक छोर को अपनी ओर खींचती और दसरे छोर को शिथिल करती तथा फिर दूसरे को अपनी ओर खींचती और प्रथम छोर को शिथिल करती हुई अपने इष्ट कार्य में अर्थात् दही में से नवनीत निकालने में सफल होती है वैसे ही जिनेन्द्र की अनेकान्तात्मक स्याद्वादपरक नीति जैननीति है जिसके द्वारा वस्तुतत्त्व का ज्ञान एवं मोक्षमार्ग की सही दिशा प्राप्त हो सकती है। ग्वालिन यदि रस्सी के एक छोर को पकड़े रहकर उसे ही खींचती चली जाये तो दही से मक्खन नहीं निकल सकता। उसी प्रकार व्यक्ति सर्वथा एकान्त पक्ष ग्रहण कर वस्तु का यथार्थ स्वरूप जो अनेकान्तात्मक है का ज्ञान प्राप्त नहीं सकता। - इसी अनेकान्तात्मक पद्धति के द्वारा एक ही समय में एक ही वस्तु में नाना विरोधी धर्मों का समावेश किया जा सकता है। जैसे एक ही व्यक्ति किसी का पिता है तो किसी का पुत्र भी, किसी का मामा है तो किसी का काका भी, यदि हम उस व्यक्ति को एक ही संबंध से पुकारते रहेंगे तो उसका वास्तविक स्वरूप नहीं जाना जा सकता। इस प्रकार केवल दृष्टिकोण का अंतर है। व्यक्ति या वस्तु में दो विरोधी गुणों का दृष्टिकोण अपेक्षाकृत सत्य है और यदि एक वस्तु को एक ही रूप में देखा जाय तो वह मात्र एकान्तवादी दृष्टिकोण होगा जो वस्तु का सम्यक् ज्ञान कराने में सक्षम नहीं होगा क्योंकि वस्तु अनन्तधर्मात्मक है। एक व्यक्ति को पिता, पुत्र, मामा, भाई, नाना एवं काका कहने में सापेक्षवाद सिद्धान्त को समझना अनेकान्तवाद को सामाजिक महत्त्व प्रदान करता है। अनेकान्त पद्धति समन्वय का वह मार्ग है जो अपनी बात को सत्य मानने के साथ ही अन्य बातों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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