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________________ 434 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda अचौर्य व ब्रह्मचर्य इन पांच महाव्रतों के साथ महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अनेकान्तवाद जैन दर्शन की लाक्षणिक विश्लेषण पद्धति को स्पष्ट करता है। भगवान महावीर के लिए 'निर्ग्रन्थ' विशेषण का प्रयोग उनकी निर्ग्रन्थता (ग्रन्थिविहीनता) को सूचित करता है। __ अत: अनेकान्त की व्यावहारिक उपयोगिता है। अनेकान्तवादी विश्लेषण पद्धति व्यक्ति के सोचने की पद्धति में आमूल परिवर्तन ला सकती है। अनेकान्त की व्यावहारिक उपयोगिता के सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक काका साहब कालेलकरजी का कथन द्रष्टव्य है-"अहिंसा धर्म का एक उज्ज्वल रूप है अनेकान्तवाद। इसकी तात्त्विक दार्शनिक और तार्किक चर्चा बहुत हो चुकी है, इसमें अब किसी को दिलचस्पी नहीं है; लेकिन सांस्कृतिक क्षेत्र में, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भिन्न-भिन्न वर्गों के सम्बन्ध के बारे में समन्वयवाद के आधार पर यदि हम इसे एक नया रूप देगें तो अनेकान्त संस्कृति फिर से सजीव और तेजस्वी बनेगी।" सन्दर्भ - १. प्रमाणवार्तिक, धर्मकीर्ति-२/२३० २. न्यायखण्डनखाद्य 'भूमिका' से उद्धृत ३. रत्नकरावतारिका पृ० ८९ ४. आप्तमीमांसा-१०५ भगवती सूत्र अभयदेवटीका पृ०६१-६२ ६. षड्दर्शनसमुच्चय कारिका-५५ ७. तत्त्वार्थसूत्र- १/६ ८. षड्दर्शन समुच्चय, टीका-पृ० २२२ ९. A History of Indian Philosophy, Y. N. Sinha-P-19 १०. वीतरागस्तोत्रम्, हेमचन्द्र, प्रकाश ८, श्लोक-१० ११. ऐतिहासिक काव्य संग्रह की भूमिका, डॉ० हीरालाल जैन, पृ०२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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