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________________ अनेकान्तवाद 429 भी व्यवहार के क्षेत्र में नहीं हुआ। इसकी आज के तनावपूर्ण द्वन्द्वादात्मक युग में काफी आवश्यकता है। शाश्वत और अशाश्वत दोनों एक ही सत्य के दो पहलू हैं। परिवर्तन, जीवन व्यवस्था और सामाजिक समस्याओं की व्याख्या करना भी अनेकान्तवाद का कार्य है। इस कार्य की उपेक्षा की गई, इसलिए दर्शन और जीवन व्यवहार में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाया । अनेकान्त कोरा दर्शन नहीं है, यह साधना है। एकांगी आग्रह राग और द्वेष से प्रेरित होता है, जैसे-जैसे राग-द्वेष क्षीण होते हैं, वैसे-वैसे यह दृष्टिकोण विकसित होता है । जैन दर्शन ने राग-द्वेष को क्षीण करने के लिए अनेकान्त दृष्टि प्रस्तुत की। राग-द्वेष में फंसा व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार कैसे कर सकता है? अनन्त दृष्टियों के सहअस्तित्व को मान्यता देनेवाला दर्शन अपने ही सिद्धान्तों में एकान्तवादी कैसे हो सकता है। उसे तो अनेकान्तवादी दृष्टि बिन्दु ही ग्राह्य होते हैं। इसे किसी 'वाद' के दायरे में बांध देंगे तो वह एकान्तिक हो जायेगा। अनेकान्तवाद के दृष्टिकोण को समाज, राष्ट्र, न्याय, पत्रकारिता, मनोविज्ञान और व्यक्तित्व के विकास के क्षेत्र में कैसे उपयोग में ला सकते हैं, इस पर संक्षेप में विचार करेंगे। अनेकान्तवाद और समाज विकसित समाज व्यक्तियों के परस्पर सहयोग, स्नेह, एकता एवं पारस्परिक सम्बन्धों की गहराई पर आधारित है। आपस में परिवार या समाज मनमुटाव के बिना रह सकता है, यदि हम व्यक्तिगत अहम् को काबू में रखें। 'मैं ही सच' और 'दूसरे गलत' यह मानना ही झगड़े का मूल कारण है। लेकिन 'मैं भी सच हूँ, शायद वे भी सच हैं' या 'मेरा दृष्टि बिन्दु मेरे कथन से सच है, तो उनका कथन उनके दृष्टिबिन्दु से सच है, ऐसा समझने स्वीकारने से बहुत से झगड़ों का अन्त स्वतः हो जाता है। एक परिवार अन्य परिवारों से, एक समाज दूसरे समाज के साथ ऐसा उदार दृष्टिबिन्दु अपनायेंगे तो अवश्य सुख शान्ति पूर्ण वातावरण पैदा हो सकता है। परिवारों से ही समाज निर्मित होता है। परिवारों के स्नेह-सौम्यनस्य से अवश्य समाज समृद्ध होता है। इसके लिए हमें केवल अपनी विचारधारा और व्यवहार को उदात्त, परिपक्व और बहुआयामी बनाना चाहिए। अनेकान्तवाद और राजनीति दृष्टिकोण को अनेकान्तिक आध्यात्मिक सिद्धान्त के रूप में स्वीकारने के साथ साथ इसे भौतिक परिप्रेक्ष्य में भी मूल्यांकित करना चाहिए। आज राष्ट्र अनकों, प्रान्त, कौम, धर्म, भाषा के दायरों में विभाजित है। ऐक्य का अभाव सर्वत्र महसूस किया जा रहा है। शांति समृद्धि के विकास की बात दूर रही, सर्वत्र हिंसा का ताण्डव नृत्य, खून आपाधापी, महंगाई, बलात्कार, बेकारी आदि इतनी बढ़ गई है कि सामान्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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