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________________ अनेकान्तवाद : एक दार्शनिक विश्लेषण 417 ३. अच्छे आदर्शों की शिक्षा ४. सामाजिक व्यवहार की शिक्षा ५. मानसिक विकास का साधन ६. स्पर्धा उत्पन्न करने का साधन ७. आत्म अभिव्यक्ति का साधन ८. व्यक्ति निर्माण का साधन शिक्षा में सहानुभूति का भी महत्त्व है। शिक्षक बालकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करके उनके विचारों और भावनाओं को जान सकता है। रॉस का परामर्श है कि जो व्यक्ति सहानुभूति के गुण से वंचित है, उसे शिक्षक नहीं बनना चाहिए। बालक के प्रत्येक अङ्ग को प्रभावित करने में खेल की भी उपयोगिता है। इसका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, वैयक्तिक, नैतिक, शैक्षिक एवं चिकित्सकीय महत्त्व है। इस प्रकार खेल बालक के व्यक्तित्व के सभी अंगों को प्रभावित करता है। अत: बालक के विकास में वंशानुक्रम, वातावरण, मूल प्रवृत्तियाँ, सुझाव, अनुकरण, सहानुभूति और खेल आदि अनेक घटक कार्य करते हैं, यह बात शिक्षा के प्रति अनैकान्तिक दृष्टि अपनाकर ही सीखी जा सकती है। अपराध मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेकान्तवाद का प्रयोग प्राचीन काल में अपराध के लिए व्यक्ति को उत्तरदायी माना जाता था। आधुनिक युग में अनैकान्तिक चिन्तन के फलस्वरूप अपराध के विषय में मनोवैज्ञानिक पद्धति से विचार करना आरम्भ हुआ है। गैब्रिल टार्डे के अनुसार अपराध सामाजिक अनुकरण का परिणाम है। रेक्लेस का कथन है कि अपराध व्यक्ति व समाज की अन्त:क्रिया का प्रतिफल है। टैफ्ट के अनुसार अपराध सांस्कृतिक विघटन का परिणाम है। मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष की दशायें अपराध को जन्म देती हैं। बोन्जर का कथन है कि अपराध सामाजिक परिस्थितियों की देन है। मावरर के मत से आर्थिक दशायें अपराध के लिए मुख्य भूमिका तैयार करती हैं। तुराती के अनुसार आर्थिक असमानता व अन्याय के कारण अपराध होते हैं। लेमर्ट का कथन है कि अपराध का मुख्य कारण परिस्थिति का दबाव है। गैरों फेलों का कथन है कि दया, ईमानदारी की भावना का दोषपूर्ण होना ही व्यक्ति को अपराधी बनाता है। गोडार्ड अपराध को मानसिक दुर्बलता का परिणाम स्वीकार करता है। एडलर का कथन है कि अपराधी मन से होता है। फ्रायड के अनुसार अपराध दमन की अभिव्यक्तियाँ हैं। गुमैचर मनोचिकित्सकीय अनुसंधान के आधार पर अपराधी व्यक्ति को पाँच वर्गों (१) सामाजिक अपराधी (२) दुर्घटनावश या अवसरवादी अपराधी (३) सावयवी या रचनात्मक रूप से पूर्वनिर्मित अपराधी (४) मनोविकृत या सामाजविकृत अपराधी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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