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________________ 410 Multi-dimensional Application of Anekāntaväda करता। जैसे विज्ञान-शास्त्री अपने प्रयोग अत्यन्त नियम, विचार-सहित और सूक्ष्मता पूर्वक करता है, फिर भी उससे उत्पन्न हुए परिणामों को वह अन्तिम नहीं कहता, अथवा यह नहीं कहता कि यही सच्चे परिणाम हैं, इस सम्बन्ध में यह संशय नहीं तटस्थ रहता है, वैसे ही अपने प्रयोगों के विषय में मेरा भी मानना है। मैंने खूब आत्मनिरीक्षण किया है, प्रत्येक भाव को जाँचा है, उसका विश्लेषण किया है, पर उससे पैदा हुए परिणाम सबके लिए अन्तिम ही हैं, अथवा यही सही है, ऐसा दावा मैं कभी करना नहीं चाहता। हाँ, एक दावा जरूर करता हूँ कि मेरी नजरों में ये सही हैं और इस समय तो आखिरी से लगते हैं। यदि ऐसा न लगे तो मुझे इनकी बुनियाद पर कोई इमारत खड़ी नहीं करनी चाहिए। मैं तो हर पद पर जिन वस्तुओं को देखता हूँ, उनके त्याज्य और ग्राह्य दो हिस्से कर लेता हूँ और ग्राह्य के अनुसार अपना आचरण बनाता हूँ और इस प्रकार बनाया हुआ आचरण मुझे अर्थात् मेरी बुद्धि को और आत्मा को जब तक सन्तोष दे, तब तक मुझे उसके शुभ परिणामों के विषय में अटूट विश्वास रखना ही चाहिए५२। जब गाँधी जी “भारत छोड़ो' आन्दोलन की योजना बना रहे थे, तब सुप्रसिद्ध अमरीकी पत्रकार श्री लुई फिशर ने उनसे पूछा कि “आपके इस कार्य से युद्ध में बाधा पड़ेगी और अमेरिकी जनता को आपका यह आन्दोलन पसन्द नहीं आएगा। आश्चर्य नहीं कि लोग आपको मित्रराष्ट्रों का शत्रु समझने लगें। गांधी जी यह सुनते ही घबरा उठे। उन्होंने कहा - "फिशर, तुम अपने राष्ट्रपति से कहो कि वे मुझे आन्दोलन छेड़ने से रोक दें। मैं तो मुख्यत: समझौतावादी मनुष्य हूँ; क्योंकि मुझे कभी भी यह नहीं लगता कि मैं ठीक राह पर हूँ।” चूँकि अनेकान्तवाद से परस्पर विरोधी बातों के बीच सामंजस्य आता है तथा विरोधियों के प्रति भी आदर की बद्धि होती है, इसलिए गांधी जी को यह बात अत्यन्त प्रिय थी। उन्होंने लिखा है, "मेरा अनुभव है कि अपनी दृष्टि से मैं सदा सत्य ही होता हूँ, किन्तु मेरे ईमानदार आलोचक तब भी मुझमें गलती देखते हैं। पहले मैं अपने को ही सही और उन्हें अज्ञानी मान लेता था, किन्तु अब मैं मानता हूँ कि अपनी-अपनी जगह हम दोनों ठीक हैं। कई अन्धों ने हाथी को अलग-अलग टटोल कर उसका जो वर्णन किया था, वह दृष्टान्त अनेकान्तवाद का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसी सिद्धान्त ने मुझे यह बतलाया है कि मुसलमान की जाँच मुस्लिम दृष्टिकोण से तथा ईसाई की परीक्षा ईसाई दृष्टिकोण से की जानी चाहिए। पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी अज्ञान में हैं। आज मैं विरोधियों की दृष्टि से भी देख सकता हूँ। मेरा अनेकान्तवाद सत्य और अहिंसा इन युगल सिद्धान्तों का ही परिणाम है।" सत्य के किसी एक पक्ष पर अड़ जाना तथा वादविवाद में आँखे लाल करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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