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________________ अनेकान्तवाद : सिद्धान्त और व्यवहार माना जा सकता है किन्तु जहां तक सप्तभंगी का प्रश्न है उसे त्रिमूल्यात्मक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसमें नास्ति नामक भंग एवं अवक्तव्य नामक भंग क्रमशः असत्य एवं अनियतता (Indeterminate) के सूचक नहीं हैं । सप्तभंगी का प्रत्येक भंग सत्यमूल्य का सूचक है यद्यपि जैन विचारकों ने प्रमाण - सप्तभंगी और नय- सप्तभंगी के रूप में सप्तभंगी के जो दो रूप माने हैं, उसके आधार पर यहाँ कहा जा सकता है कि प्रमाणसप्तभंगी के सभी भंग सुनिश्चित सत्यता और नय सप्तभंगी के सभी भंग सम्भावित या आंशिक सत्यता का प्रतिपादन करते हैं। असत्य का सूचक तो केवल दुर्नय ही है । अत: सप्तभंगी त्रिमूल्यात्मक नहीं है। यह तो अनेकांत के सैद्धान्तिक पक्ष की चर्चा हुई, अब हम उसके व्यावहारिक पक्ष की चर्चा करेंगे। ( II ) अनेकान्तवाद का व्यावहारिक पक्ष अनेकान्त का व्यावहारिक जीवन में क्या मूल्य और महत्त्व है, इसका यदि ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन करें तो हमें सर्वप्रथम उसका उपयोग विवाद पराङ्मुखता के साथ-साथ परपक्ष की अनावश्यक आलोचना व स्वपक्ष की अतिरेक प्रशंसा से बचना है । इस प्रकार का निर्देश हमें सर्वप्रथम सूत्रकृतांग (१/१/२/२३) में मिलता है। जहाँ यह कहा गया है कि जो अपने पक्ष की प्रशंसा और पर पक्ष की निन्दा में रत हैं, वे दूसरों के प्रति द्वेष वृत्ति का विकास करते हैं, परिणाम स्वरूप संसार में भ्रमण करते हैं। साथ ही महावीर चाहते थे कि इस अनेकान्त शैली के माध्यम से कथ्य का सम्यक् रूप से स्पष्टीकरण हो और इस तरह का प्रयास उन्होंने भगवतीसूत्र में अनैकान्तिक उत्तरों के माध्यम से किया है। जैसे जब उनसे पूछा गया कि सोना अच्छा है या जागना तो उन्होंने कहा कि पापियों का सोना व धार्मिकों का जागना अच्छा है। जैन दार्शनिकों में इस अनेकान्तदृष्टि का व्यावहारिक प्रयोग सर्वप्रथम सिद्धसेन दिवाकर ने किया। उन्होंने उद्घोष किया कि संसार के एकमात्र गुरु उस अनेकान्तवाद को नमस्कार है जिससे बिना संसार का व्यवहार ही असम्भव है। परमतत्त्व या परमार्थ की बात बहुत की जा सकती है किन्तु वह मनुष्य जो इस संसार में रहता है उसके लिए परमार्थ सत्य की बात करना उतनी सार्थक नहीं है जितनी व्यवहार जगत् की और व्यवहार का क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ अनेकांत दृष्टि के बिना काम नहीं चलता है। परिवार के एक ही स्त्री को कोई पत्नी कहता है, कोई पुत्रबधू कहता है, कोई मां कहता है तो कोई दादी, कोई बहन कहता है तो कोई चाची, नानी आदि नामों से पुकारता है। एक व्यक्ति के सन्दर्भ में विभिन्न पारिवारिक संबंधों की इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। आर्थिक क्षेत्र में भी अनेक ऐसे प्रश्न हैं जो किसी एक तात्त्विक एकान्तवादी अवधारणा के आधार पर नहीं सुलझाए जा सकते हैं। उदाहरण के रूप में यदि हम एकान्तरूप से व्यक्ति को परिवर्तनशील मानते हैं तो Jain Education International XXXV For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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