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________________ अनेकान्तवाद की प्रासंगिकता 377 (१) आयुर्वेद-पद्धति- यह हमारी भारतीय चिकित्सा पद्धति है। चरकसश्रृत-आदि चिकित्साचार्यों द्वारा पोषित मूलत: 'धन्वंतरि' नामक अद्भत दैविक शक्तियों से समर्थ व्यक्ति से स्थापित पद्धति है। यह बात-कफ-पित-इन त्रिदोषों के समुचित समाधान के द्वारा निदान करने वाली चिकित्सा पद्धति है। (२) एलोपैथिक पद्धति- यह पाश्चात्य वैद्यकीय पद्धति है। ग्रीक देश के प्राचीन वैद्यकीय ज्ञान की वृद्धि के साथ सारे विश्व में इस पद्धति का प्रचार हआ। जैसेजैसे अंग्रेजी साम्राज्य सारी दुनियाँ में फैलता गया वैसे-वैसे ही अंग्रेजों ने अपनी चिकित्सा पद्धति को सर्वत्र फैला दिया। तेज और असरकारक उपचार में सहायक होने के कारण यह पद्धति अधिक लोकप्रिय हुई है। परंतु धीरे-धीरे अब इसके साइड इफेक्टस के कारण जनसामान्य की रुचि इसके प्रति कम होती जा रही है। (३) होम्योपैथी पद्धति - जर्मनी के चिकित्सक हैनिमेन द्वारा स्थापित इस पद्धति में अत्यंत कम दवा देकर रोग की चिकित्सा की जाती है। दवा जितनी दर्बल व सूक्ष्म होती है वह उतनी प्रबल एवं रोग निवारक मानी जाती है। इस पद्धति में "साइड एफेक्टस' न होने के कारण इस पद्धति के डाक्टर और अस्पताल आजकल सर्वत्र प्रचलित हैं। (४) नेचुरोपैथी- पद्धति- प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अत्यंत प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसे हमारे पाश्चात्य एलोपैथ की चकाचौंध में भुला दिया गया था। परन्तु जर्मनी के डी० कुल्हे नामक विशेषज्ञ ने तथा भारत में महात्मा गांधी ने इस पद्धति को पुनरुज्जीवित किया। इस पद्धति के अनुसार किसी रासायनिक पदार्थ को दवा के रूप में खिलाना खतरनाक है। उसके स्थान पर प्रकृति में मिलने वाली मिट्टी, फल, फूल पत्ते, पानी, हवा-इत्यादि के द्वारा ही चिकित्सा दी जाती है। भारत का योग विज्ञान प्राणायाम तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के योगासन इस चिकित्सा पद्धति में महत्त्वपूर्ण हैं। अत: आजकल इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से स्वास्थ्य लाभ करने के लिए अस्पताल खुले रहे हैं। इस पद्धति का भी अपना अलग महत्त्व है। (५) यूनानी पद्वति- यद्यपि इस पद्धति का आरंभ ग्रीक देश में हुआ, फिर भी इसका प्रचार व प्रसार फारस में हुआ और इराक-इरान व अफगानिस्तान के मार्ग से भारत तक पहुँच गया। यह पद्धति भी अत्यन्त उपयोगी है। कुछ तो विशेष रोग ऐसे हैं जिनका सही उपचार इसी पद्धति में उपलब्ध है। ये सभी पद्धतियाँ वैद्यकीय विज्ञान कहलाती हैं, इनमें से सभी का उद्देश्य मानव को पूर्ण आरोग्य लाभ कराना है। कभी-कभी कुछ अविवेकी लोग यह झगड़ा शुरू करते हैं कि हमारी पद्धति ही श्रेष्ठ है, बाकी पद्धतियाँ गलत हैं या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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