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________________ 360 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda __ अब चित्र संख्या ५ को देखने से स्पष्ट हो जायेगा कि A, B, C, A-B, A.C, B.-C और A-~B C का क्षेत्र अलग-अलग है। जिसके आधार पर सप्तभंगी के प्रत्येक भंग की मूल्यात्मकता और उनके स्वतन्त्र अस्तित्व का निरूपण हो सकता है। यद्यपि सप्तभंगी का यह चित्रण वेन डाइग्राम से तुलनीय नहीं है, क्योंकि यह उसके किसी भी सिद्धान्त के अन्तर्गत नहीं है, तथापि यह चित्रण सप्तभंगी की प्रमाणता को सिद्ध करने के लिए उपयुक्त है। सांयोगिक कथनों का मूल्य और महत्त्व अपने अंगीभूत कथनों के मूल्य और महत्त्व से भिन्न होता है इस बात की सिद्धि भौतिक विज्ञान के निम्नलिखित सिद्धान्त से की जा सकती है ___ कल्पना कीजिए कि भिन्न भिन्न रंग वाले तीन प्रक्षेपक अ, ब और स इस प्रकार व्यवस्थित हैं कि उनसे प्रक्षेपित प्रकाश एक दूसरे के ऊपर अंशत: पड़ते हैं, जैसा कि चित्र में दिखलाया गया है अब अ+ब+स अ+स / ब+स चित्र सं ५ प्रत्येक प्रक्षेपक से निकलने वाले प्रकाश को हम एक अवयव मान सकते हैं। क्षेत्र अ, ब और स एक रंग के प्रकाश से प्रकाशित हैं और क्षेत्र अ+ब, ब+स और अ+स दो-दो अवयवों से प्रकाशित हैं। जबकि बीचवाला भाग जो तीन अवयवों से प्रकाशित है उसे अ+ब+स क्षेत्र कह सकते हैं। उस भाग को जो दो रंगों के प्रकाश से प्रकाशित है, मिश्रण कहते हैं। क्योंकि प्रकाशित भाग अ,ब और स तीनों से प्रकाशित होता है। जैसे ही तीनों अवयवों में से कोई अवयव बदलता है, मिश्रण का रंग बदल जाता है और किसी भी रंग वाले भाग में से उसके अवयवों को पहचाना नहीं जा सकता है। वस्तुत: वह दूसरे रंग को जन्म देता है, जो उसके अंगीभूत अवयवों से भिन्न होता है। उस मिश्रण को उसके अवयवों में से किसी एक के द्वारा सम्बोधित नहीं किया जा सकता है। अतएव उन्हें मिश्रण कहना ही सार्थक है। रंगों का ज्ञान भी कुछ, इसी प्रकार का है। यदि हम पीला, नीला और वायलेट को मूलरंग मान कर मिश्रित रंग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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