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________________ 338 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda गुण। प्रत्येक वस्तु में अनन्त गुण विद्यमान हैं, अतः जहाँ अनेक का अर्थ अनन्त होगा वहां अन्त का अर्थ गुण लेना चाहिए। इस व्याख्या के अनुसार अर्थ होगा- अनन्त गुणात्मक वस्तु ही अनेकान्त है। किन्तु जहाँ अनेक का अर्थ दो लिया जायेगा वहां “अन्त” का अर्थ धर्म होगा। तब यह कहा जा सकता है कि - परस्पर विरुद्ध प्रतीत होने वाले दो धर्मों का एक ही वस्तु में होना अनेकान्त है। अनेकान्त दृष्टि या नयदृष्टि विराट वस्तु को जानने का वह प्रकार है, जिसमें विवक्षित धर्म को जानकर भी अन्य धर्मो का निषेध नहीं किया जाता। उन्हें गौण या अविवक्षित कर दिया जाता है और इस प्रकार हर हालत में पूरी वस्तु का मुख्य गौण भाव से स्पर्श हो जाता है। उसका कोई भी अंश कभी नहीं छूट पाता। जिस समय जो धर्म विवक्षित होता है वह उस समय मुख्य या अर्पित बन जाता है और शेष धर्म गौण या अनर्पित रह जाते हैं। इस तरह जब मनुष्य की दृष्टि अनेकान्त तत्त्व का स्पर्श करने वाली बन जाती है तब उसके समझाने का ढंग भी निराला हो जाता है । वह सोचता है कि हमें उस शैली से वचन प्रयोग करना चाहिए, जिससे वस्तु का यथार्थ प्रतिपादन हो। इस शैली या भाषा के निर्दोष प्रकार की आवश्यकता से ही "स्याद्वाद" का अविष्कार हुआ। अनेकान्त दृष्टि को यदि हम मनोविज्ञान के संदर्भ में देखें तो दोनों में गहन पारस्परिक सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता है । यदि एक ही उद्दीपक (S) अलग-अलग पांच व्यक्तियों को दिया जाय तो सभंव है कि उन पाचों की अनुक्रियायें (R) पृथक्-पृथक् बात की ओर इंगित करें। उदाहरणार्थ - उद्दीपक है, नहीं है, हो सकता है, हो भी सकता है और नहीं भी तथा है लेकिन कहा नहीं जा सकता इत्यादि । यह महान् आश्चर्य का विषय हो सकता है कि मनोविज्ञान का विधिवत अध्ययन लिपिजिंग विश्वविद्यालय में विल्हेम वुण्ट (१८७९) द्वारा प्रथम प्रयोगशाला की स्थापना के बाद प्रारंभ हुआ, जबकि अनेकान्त का मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय २४ तीर्थंकरों की महान परम्परा से जुड़ा हुआ है। यदि अनेकान्त को व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ज्ञात होता है कि एक ही व्यक्ति का प्रत्यक्षीकरण विभिन्न व्यक्तियों द्वारा विभिन्न कोणों से किया जाता है। यहाँ व्यक्ति - प्रत्यक्षीकरण के गुणारोपण सिद्धान्त की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। केली (१९६७-१९७१) के अनुसार प्रेक्षक (Observer) एक छोटे मोटे सामान्य वैज्ञानिक की भांति होता है। जो अभिकर्ता (Actor) की क्रियाओं का निरीक्षण करके यह संज्ञान करता है कि उन क्रियाओं का कारण क्या है ? उदाहरण के लिए मान लिया जाए कि कोई छात्र किसी चुटकुले को पढ़कर जोर से हंस पड़ता है। ऐसी स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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