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________________ 316 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda दृष्टि से आत्मा नित्य है, और पर्याय-दृष्टि से आत्मा अनित्य है। द्रव्य-दृष्टि से आत्मा अकर्ता है और पर्याय दृष्टि से आत्मा कर्ता भी है। वस्तुत: वस्तु-स्वरूप के प्रतिपादन की यह उदार दृष्टि ही अनेकान्तवाद है। अनेकान्तवाद का जब हम भाषा के माध्यम से कथन करते हैं तब उसे स्याद्वाद और सप्तभंगी कहा जाता है। अनेकान्तवाद का आधार है- सप्तनय और सप्तभंगी का आधार है सप्तभंग एवं सप्तविकल्प। भगवान् महावीर की यह अहिंसा मूलक अनेकान्त दृष्टि और अहिंसामूलक सप्तभंगी जैन दर्शन की आधार-शिला है। भगवान महावीर के पश्चात् विभिन्न युगों में होने वाले जैन आचार्यों ने समय-समय पर अनेकान्तवाद और स्याद्वाद की युगानुकूल व्याख्या करके उसे पल्लवित और पुष्पित किया है। इस क्षेत्र में सबसे अधिक और सबसे पहले अनेकान्तवाद और स्याद्वाद को विशद रूप देने का प्रयत्न आचार्य सिद्धसेन दिवाकर तथा आचार्य समन्तभद्र ने किया था। उक्त दोनों आचार्यों ने अपने-अपने युग में उपस्थित होने वाले समग्र दार्शनिक प्रश्नों का समाधान करने का प्रयत्न किया । आचार्य सिद्धसेन ने अपने "सन्मतितर्क" नामक ग्रंथ में सप्त नयों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया है। जबकि आचार्य समन्तभद्र ने अपने "आप्तमीमांसा' ग्रंथ में सप्तभंगी का सूक्ष्म विश्लेषण और विवेचन किया है। मध्य युग में इसी कार्य को आचार्य हरिभद्र और आचार्य अकलंक देव ने आगे बढ़ाया। नव्यन्याय युग में वाचक यशोविजय जी ने अनेकान्तवाद और स्याद्वाद पर नव्य न्याय शैली में तर्क ग्रंथ लिखकर दोनों सिद्धान्तों को अजेय बनाने का सफल प्रयत्न किया है। भगवान् महावीर से प्राप्त मूल दृष्टि को उत्तरकाल के आचार्यों ने अपने युग की समस्याओं का समाधान करते हुए विकसित किया है। कोई भी पदार्थ स्याद्वाद की मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकता - __"आदीपमाव्योमसमस्वभावं स्याद्वाद मुद्रानतिभेदि वस्तु ।। अनेकान्तवाद का आधार न लिया जाए तो व्यावहारिक और दार्शनिक दोनों दृष्टियों से काफी उलझनें खड़ी हो जाती हैं। उदाहरण के रूप में देखें ___चार पर्वतारोही हिमालय की एवरेस्ट चोटी पर पहुंचे। चारों व्यक्ति चार स्थानों में खड़े थे । वहां से उन्होंने हिमालय पर्वत के चित्र लिये । चासें अपने-अपने चित्र लेकर लोगों से मिले । उन्होंने सबको चित्र दिखाए और कहा-हिमालय ऐसा है। चारों चित्रों में असमानता थी । प्रत्येक पर्वतारोही अपने चित्र को सही बता रहा था दर्शक उलझन में पड़ गए । आखिर एक व्यक्ति ने सबकी उलझन समाप्त करते हुए बताया - ये च्यरों चित्र हिमालय के हैं। चूंकि ये भिन्न-भिन्न स्थानों से लिए गए हैं - इसलिए इनमें भिन्नता स्वाभाविक है । अमुक स्थान पर खड़े होने से जो दृश्य दिखाई देता है, वह दूसरे स्थान से दृष्टिगोचर नहीं हो सकता। दृष्टिकोण की भिन्नता से तथ्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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