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________________ xxvi युगपत् (एकसाथ) अनन्तत्व व्याघातक उद्देश्य विधेय भंगों के आगमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप ठोस उदाहरण १. स्यात् अस्ति अ उ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है। २. स्यात् नास्ति अ> अ वि नहीं है. यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते है तो आत्मा नित्य नहीं है। ३. स्यात् अस्ति नास्ति च अउ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से अ उ वि नहीं है. विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है और यदि पर्याय की अपेक्षा से चिार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। ४. स्यात् अवक्तव्य (अ. अरे ) उ यदि द्रव्य और पर्याय दोनों अवक्तव्य है. ही अपेक्षा से एक साथ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। (क्योंकि दो भिन्न भिन्न अपेक्षाओं से दो अलग-अलग कथन हो सकते हैं किन्तु एक कथन नहीं हो सकता है।) ५. स्यात् अस्ति च अ उ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से अवक्तव्य च (अ. अ)य उ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है. नित्य है किन्तु यदि आत्मा अथवा का द्रव्य, पर्याय दोनों या अ उ वि है. अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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