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________________ भक्तामर स्तोत्र में भक्ति एवं साहित्य 67 का अवमूल्यन हो जाता है । आपके दर्शन से चित्त इतना संतुष्ट हो जाता है कि मृत्यु के उपरांत भी अन्य जन्मों में अन्य देवों के दर्शन की एषणा नहीं रहती । जिनेन्द्र देव सहस्र नामों के धारक एवं तदनुरूप गुणों के धारक हैं । अक्षय, अव्यय, आद्य-: स्मरणीय ब्रह्मा, ईश्वर, अनन्त, योगीश्वर ज्ञानस्वरूप हैं। आपकी सर्वाधिक महत्ता यही है कि आप 'त्रिभुवनाति हर' हैं आपके दर्शन से मानसिक पीड़ा, व्याधि तो दूर होते ही हैं पर उच्चस्थिति में प्रस्थापित होकर परमात्मा और आत्मा का एक अभेद भाव प्रगट होता है। श्री जिनेन्द्र देव के ८ प्रतिहार्यो की महत्ता जिनेन्द्रदेव के रूप और दर्शन के कारण है। भगवान के दर्शन और ध्वनि से मुमुक्षुओं की मुक्ति और लौकिकजनों को स्वर्ग संपदादिक पुण्य विभूतियों के द्वारा स्वय खुल जाते हैं। तीर्थ कर देव तो सर्वोदय तीर्थ के साक्षात् प्रतीक हैं । समवशरण में उनके दर्शन मात्र से प्राणी परस्पर वैरभाव भूल जाते है । उनके स्मरण मात्र से भयानक रोग-शोक भय नष्ट हो जाते हैं। अरे ! लोहजंजीरों में जकड़ा बन्दी भी नाम-स्मरण मात्र से भय एव बंधनमुक्त हो जाता है। . इस प्रकार आचार्य मानतुंगजी ने अपने आराध्य ऋषभदेव के नाम-दर्शन एवं स्मरण की महत्ता की प्रस्थापना अनेक उदाहरणों, अनेक रूपों से की है। आराध्य की महिमा एवं अतिशय । यद्यपि अपने इस लेख में मैंने आराध्य के रूपसौन्दर्य एव नामदर्शन के महत्त्व उपशीर्षकों में अरहंत की किंचित महिमा की चर्चा की है। प्रायः प्रत्येक भक्त, भक्ति की भावविह्वलता में भाव 1. (२४) 2. श्लोक (२६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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