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________________ 62 जैन साहित्य समारोह - गुच्छ २ से अपने आराध्य का चमत्कार या अतिशय बताने को कहा । उन्हें ४८ कोठरियों के भीतर बंद कर दिया । प्रत्येक कोठरी में ताला लगा दिया । वही आचार्य ने इस भक्ति-भाव- प्लावित स्तोत्र की रचना की और एक श्लोक की रचना से एक-एक ताला टूटता गया । कहीं-कहीं ४८ साकलों से जकड़ने की भी चर्चा है । आचार्य मानतुंग श्वेताम्बर थे या दिगम्बर ? श्वेतांबर से दिगंबर हुये या दिगंबर से श्वेतांबर ? यह चर्चा विद्वानों के लिये छोड़ दे पर. एक सत्य है कि मानतुगाचार्य दोनों सम्प्रदायों में पूज्य थे और इस अमरगीत के गायक भक्त कवि अवश्य थे। भक्तामर की अनेक भाषाओं की प्रतियाँ, अनुवाद एवं उस पर लिखी गई अनेक टीकायें उपलब्ध हैं यही इसकी लोकप्रियता का वृहद् प्रमाण है। "भक्तामर स्तोत्र' में भक्ति का स्वरूप भक्तामर स्तोत्र के इस स्तवन में कवि ने अपने प्रबल भावभक्ति को इष्टदेव के प्रति अनुरागरत होकर गाया है। आराध्य प्रभु के रूपसौन्दर्य, उनके दर्शन एवं नाम का महत्त्व एवं फल-आराध्य की महिमा और अतिशय उनके उपदेश का लौकिक एवं पारलौकिक फल जैसे गुणों का स्मरण, स्थापन करते हुए आचार्य आराध्य के वंदन, अर्चन और पूजन में तल्लीन हो गये हैं । सम्पूर्ण स्तोत्र में आराध्य की गुरुता और स्वयं की लघुता का ही बहुलतासे वर्णन है - दास्यभक्ति का यही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लक्षण भी है। आराध्य का रूपसौन्दर्य : ___स्तोत्र का प्रारंभ ही आचार्य ऋषभदेव के अचरणों की वंदना से करता है जिनके पद-नख के प्रकाश से देवताओं के मुकुण की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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