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________________ अप्रकाशित प्राकृत शतकत्रय - एक परिचय डॉ. प्रेमसुमन जैन श्री ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, उज्जैन के ग्रन्थ भण्डार का जुलाई, १९८४ में अवलोकन करते समय प्राकृत भाषा में रचित शतकत्रय की एक पाण्डुलिपि प्राप्त हई । यह पाण्डुलिपि वि. सं. १९८१ में अश्विन सुदी चतुर्थी बुधवार को लिखि गयी है। इसमें रचनाकार और रचनाकाल का उल्लेख नहीं है। यह एक संग्रहग्रन्थ प्रतीत होता है । इसलिए इसमें लेखक या संग्रहकर्ता का नामोल्लेख नहीं है । प्राकृत साहित्य के इतिहास में भी ऐसे किसी लेखक का नाम नहीं मिलता, जिसने शतकत्रय की रचना की हो । इस पाण्डुलिपि में कुल ३२ पन्ने अर्थात् ६४ पृष्ठ हैं । बड़े अक्षरों में दूर-दूर लिखावट है । एक पृष्ठ में प्राकृत की कुल ७ पंक्तियां हैं । लगभग ९ शब्द एक पंक्ति में हैं । पन्ने लगभग ११ इच लम्बे एवं ८ इच चौड़े हैं। इस प्राकृत शतकत्रय में प्रथम इन्द्रियशतक, द्वितीय वैराग्यशतक एवं तृतीय आदिनाथशतक का वर्णन है । शतकत्रय से भर्तृहरि के शतकत्रय का स्मरण होता है, जिसमें नीति, वैराग्य और शृंगार शतक सम्मिलित हैं । इनमें इस प्राकृत शतक का कोई सम्बन्ध नहीं है । केवल नाम-साम्य है । जैन आचार्यों में खरतरगच्छ में जिन भद्रसूरि के शिष्य देहडसुपुत्र श्री धनदराज संघपाटी ने सं. १४९० में मंडपदुर्ग में एक शतकत्रय की रचना की थी ।। किन्तु यह शतकत्रय 1. वेलेणकर, एच. डी. : 'जिनरत्नकोश', पृ. ३७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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