SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वा आग दुखमा जैन दर्शन में दिक् और काल की अवधारणा 35 सागरोपम ४२,००० वर्ष ४. सुखमदुखमा २ क्रोडाक्रोड दुखमसुखमा १ क्रो. सा. ४२,००० वर्ष ५. सुखमा ३ क्रो. सा. दुखमा २१,००० वर्ष ६. सुखमसुखमा ४ क्रो. सा. दुखमदुखमा वर्तमान में जो आरा चल रहा है वह अवसर्पिणी काल का ५ वाँ आरा 'दुखमा' है। इस आरे का प्रारंभ भगवान महावीर के निर्वाण के ३ वर्ष ८ १/२ मास पश्चात् हुआ था। भगवान् महावीर का निर्वाण ईसा पूर्व ५२७ में हुआ था। अतः ईसवी पूर्व ५२४ से ५ वें आरे का प्रारंभ होता है । ईसवी सन् २०४७६ में इस आरे का अन्त होगा और छठे आरे का आरम्भ होगा। छठे आरे का प्रारम्भ में होने वाली स्थिति का विस्तृत विवरण " भगवती सूत्र" व 'जम्बूदीप प्रज्ञप्ति' ही में मिलता है। एक उदाहरण इस प्रकार है : ___ उस समय दुःख से लोगों में हाहाकार होगा। अत्यन्त कठोर स्पर्श वाला मलिन, धूलि-युक्त पवन चलेगा। वह दुःसह व भय उत्पन्न करने वाला होगा। वर्तुलाकार वायु चलेगी, जिससे धू. लि. आदि एकत्रित होगी । पुनः पुनः उड़ने से दशों दिशाए रजः सहित हो जागी। धूलि से मलिन अंधकार समूह के हो जाने से प्रकाश का आविर्भाव बहुत कठिनता से होगा। समय की रूक्षता से चन्द्रमा अधिक शीत होगा और सूर्य भी अधिक तपेगा। उस क्षेत्र में बार-बार बहुत अरस “विरस मेद्य, क्षार, मेघ, विद्युन्मेद्य, अमनोज्ञ, मेद्य, प्रचण्ड वायु वाले मेद्य” बरसेंगे। ...उस समय भूमि अग्निभूत, मुर्मरभूत, भस्मभूत हो जाएगी। पृथ्वी पर चलने वाले जीवों को बहुत कष्ट होगा । उस क्षेत्र के मनुष्य विकृत वर्ण गन्ध, रस, स्पर्श वाले होंगे तथा वे ऊँट की तरह वक्र चाल चलनेवाले शरीर के विषम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy