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________________ 32 जैन साहित्य समारोह - गुष्कर को पार करने में लगभग एक सैकिण्ड का दसवां भाग लगता है और टेलीपेथी विशेषज्ञों का कथन है कि मन की सरंगों की गति प्रकाश की गति से कितना ही गुना अधिक है। अतः मन की तरंग को क्रिष्टन के ऐक आयाम को पार करने में तो शंख से भी कितने ही गुना अधिक कम समय लगता है। इस प्रकार एक सैकिण्ड में असंख्यात समय होते हैं यह कथन वैज्ञानिक दृष्टि से भी युक्ति-युक्त प्रमाणित होता है। समय की सूक्ष्मता का कुछ अनुमान व्यावहारिक उदाहरण टेलीफोन से लगाया जा सकता है। कल्पना कीजिये कि आप दो हजार मील दूर बैठे हुए किसी व्यक्ति से टेलीफोन से बात कर रहे हैं। आपकी ध्वनि विद्यततरंगों में परिणत हो तार के सहारे चल कर. दूरस्थ व्यक्ति तक पहुँचती है और उसकी ध्वनि आप तक । इसमें जो समय लगा, वह इतना कम है कि आपको उसका अनुभव तक नहीं हो रहा है और ऐसा लगता है मानों कुछ भी समय न लगा हो और आप उस व्यक्ति से समक्ष ही बैठे बातचीत कर रहे हों। चार हजार मील तार को पार करने में तरंग को लगा समय भले ही आपको प्रतीत न हो रहा हो फिर भी समय तो लगा ही है। क्योंकि तरंग वहाँ एकदम नहीं पहुंची है बल्कि एक-एक मीटर और एकएक मिलीमीटर को पार करने में जितना समय लगा, उसकी सूक्ष्मता, का अनुमान लगाइये । आप चाहे अनुमान लगा सके. या न लगा सके परन्तु तरंग को एक मिलीमीटर तार पार करने में समय तो लगा ... ही है । जैन दर्शन में वर्णित समय इससे भी असंख्यात गुना अधिक सूक्ष्म है। समयः' नापने के विधि में भी जैन दर्शन व विज्ञानजगत में आश्चर्यजनक समानता है। दोनों ही गति क्रियारूप स्पंदन के माध्यम से समय का परिमाण निश्चित करते हैं। यथा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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