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________________ 18 " जैन साहित्य समारोह - गुच्छ २ विवरण प्राप्त करने का परिश्रम और समय की बचत हो सकती है। रास, चौपई, तीर्थमाला, शिलालेख, प्रशस्तियों आदि संदर्भ समर्थित प्रामाणिक इतिहास लिखा जा सकता है। . नन्दी या नामान्त पद सम्बंधी जिन जिन मर्यादाओं, विद्याओं का उपर उल्लेख किया गया है वह सब खरतरगच्छ की श्री जिनभद्रसूरि परम्परा - बृहत् शाखा - के दृष्टिकोण से यथाज्ञात लिखा है। संभव है इस विशाल गच्छ की अनेक शाखाओं की परिपाटी में भिन्नता भी आ गई हो ! यह शोध का विषय सामग्री की उपलब्धि पर निर्भर है। वर्तमान में उपर्युक्त परिपाटी केवल यति समाज में ही है । जहाँ परम्परा में हजारों यतिजन थे क्रमशः आचारहीन होते गये, क्रिया उद्धार करने वाले मुनिजनों से उनका सम्बन्ध विच्छेद हो गया। कुछ आचारवान और विद्वानों के अतिरिक्त यतिजन भी गृहस्थवत् हो गये। मर्यादाएँ मरणोन्मुख होती जाने से अब दफतरलेखन प्रणाली भी नामशेष हो रही है। खरतरगच्छीय मुनियों में अभी एक शताब्दी से उन प्राचीन परिपाटियों प्रणालियों का व्यवहार बंध हो गया है। अब उनमें केवल 'सागरनंदी' और श्री मोहनलालजी महाराज के समुदाय में 'मुनि' एवं साध्वियों में "श्री" नामान्त पद ही रूढ हो गया है। गुरु-शिष्यों का एक ही नामान्त पद हो जाने से उतना सौष्ठव नहीं रहा। साध्वियों के नाम व दीक्षा आदि का विवरण जयपुर श्रीपूज्यजी के दफतर में सं. १७८३. से उपलब्ध है। त्याग-वैराग्यमय परम्परा शिथिल होते. यतिनी साध्वी प्ररम्परा का नामशेष होना अनिवार्य था। संवेगी परम्परा में वे. परिपाटियाँ तो शेष हो गई - परः जिनशासन की उन्नति में शासनप्रभावना में चार चांद लग गए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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