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________________ जैन मुनियों के नामान्त पद या नन्दियाँ 15 - पदादि दिये उसी पूरी नामावली लिख लेते थे । जहाँ जहां विचरते थे वहाँ की प्रतिष्ठा, संघयात्रा, आदि महत्त्वपूर्ण कार्यो एवं घटनाओं का उल्लेख उसमें अवश्य किया जाता एवं विशिष्ट श्रावकों के नाम, परिचय, भक्तिकार्यादिका विवरण लिखा जाता रहा । जैसलमेर भण्डार की प्राचीन सूची में एक ऐसी ३५० पत्रों की प्रति होने का उल्लेख देखा था पर वह अनुपलब्ध है। खरतरगच्छ अनेक शाखाओं में विभक्त हो गया और वे शाखाएं नामशेष हो गई ऐवं जो सामग्री थी, नष्ट हो गई । यदि वह सामग्री उपलब्ध होती तो खरतरगच्छ का ऐसा सर्वागपूर्ण व्यवस्थित इतिहास तैयार होता, जैसा शायद ही किसी गच्छ का हो । भारतीय इतिहास में ये दफ्तर-इतिहास, गुर्वावली, ख्यात आदि अत्यन्त मूल्यवान सामग्री है । हमे सर्वप्रथम दफतर जिसका नाम युगप्रधानाचार्य गुर्वावली है, सं. १३९३ तक का उसमें विवरण उपलब्ध है। उसके बाद सं. १७०७ से वर्तमान तक का परवर्ती दफतर संप्राप्त है। मध्यकालीन जिनभद्रसूरिजी और यु० श्री जिनचन्द्रसूरिजी के समय के ३०० वर्षो का दफतर मिल जाता तो सवाँगपूर्ण इतिहास तैयार करने में हम सक्षम होते। यदि किसी ज्ञान भण्डार में, बिना सूचि के अटाले में सौभाग्यवश मिल जाय तो उसकी पूर्णतया शोध होना आवश्यक है। सं. १७०७ से वर्तमान तक का एक दफतर जयपुर गद्दी के श्रीपूज्य श्री जिनधरणेंद्रसूरिजी तक का उपलब्ध है जिसमें अनेकशः पुराने दफतर से उद्धृत करने का जिक्र है । यद्यपि वह इतना व्यवस्थित नहीं है फिर भी उसमें राजस्थान, गुजरात के सैंकडों गाँवों में विचरते और वहाँ के श्रावकों का उल्लेख है जो मूल्यवान सामग्री, है। इसी प्रकार खरतरगच्छ की अन्यान्य शाखाओं के दफतर मिल जाए तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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