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________________ भारतीय साहित्य को जैन साहित्य की देन ३५७ ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर इन पांच तीर्थकरो और २ लोकप्रसिद्ध महापुरुष - राम और कृष्ण, इन सातों महापुरुषोंकी जीवनी एक साथ चलती है। ऐसी रचना विलक्षण तो है ही, कठिन भी इतनी है, फिर बिन टीका के सातो महापुरुषो से प्रत्येक श्लोक की संगति बिठाना विद्वानो के लिए भी संभव नहीं होता । यह महाकाव्य टीका के साथ पत्राकार रूप में प्रकाशित हो चूका है । वैसे द्विसंधान, पंचसंधान आदि तो कई काव्य मिलते हैं पर 'सप्तसंधान' विश्वभर में यह एक ही है। ग्रन्थकार ने ऐसा काव्य आचार्य हेमचन्द्रने बनाया था' लिखा है पर वह प्राप्त नहीं है। कन्नड साहित्यका एक विलक्षण ग्रन्थ है – 'भूविलय' । कहा जाता है कि इसमें अनेक ग्रन्थ संकलित हैं और अनेक भाषाएं प्रयुक्त हैं । बीच में कुछ वर्षों तक इस की काफी चर्चा रही ओर इस का एक भाग जैन मित्र मण्डल, दिल्ली से प्रकाशित भी हुआ। पर इस ग्रन्थ का पूरा रहस्य सामने नहीं आ सका । . दिगम्बर जैन विद्वान हंसराजरचित 'मृगपक्षी शास्त्र' नामक एक और ग्रन्थ भी विलक्षण है, जिस में कई पशु-पक्षियों सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी संस्कृत में दी गई है। अपने ढंग का यह एक ही ग्रन्थ है। इसकी प्रतिलिपि मैंने ओरियन्टल इन्स्टीट्यूट, बडौदा में देखी थी और बन्ध के एक विद्वान से अनुरोध कर के इस के सम्बन्ध में एक निबन्ध 'स्वाध्याय' त्रैमासिक में प्रकाशित भी करवाया दिया है। ऐसे और भी कई अद्वितीय ग्रन्थ जैन साहित्य में हैं जो भारतीय साहित्य को विशिष्ट देन है। गत ६०-७० वर्षों से देश और विदेश के कई विद्वानोने जैन साहित्य की खोज करके उसकी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रकाश में लाने का प्रयास किया है । लेखों के रूप में तो अनेक व्यक्तिओने काम किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.014001
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1985
Total Pages413
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size17 MB
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