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________________ वैशाली का प्रजातन्त्र 41 उच्च संस्कृति का द्योतक है / अन्तिम दो बातें धर्म के प्रति वज्जियों की उदारता को बतलाती हैं। बुद्ध ने इसी वैशाली के बाहर सारंदद-चैत्य में वैशाली-वासियों को उनकी इन सात बातों पर अटल रहने का आदेश दिया था। अजातशत्रु के महामन्त्री वर्षकार को उसकी बात का जवाब देते हुए मगध की तत्कालीन राजधानी राजगृह में बुद्ध ने कहा था, "ब्राह्मण ! एक समय मैं वैशालो के सारंदद-चैत्य में ठहरा हुआ था, वहाँ मैंने वज्जियों को यह सातपतन-विरोधी बातें बतलायी थीं। जब तक ये सात बातें वज्जियों में रहेंगी,"...."तब तक बज्जियों की उन्नति ही होगी, हानि नहीं। वैशाली प्रजातंत्र की न्याय-व्यवस्था कितनी सुन्दर थी, इसकी कुछ झलक हमें दीघनिकाय की अठ्ठकथा' में मिलती है : “परम्परा से चला आया वज्जि-धर्म यह था कि वज्जि के शासक 'यह चोर है, अपराधी है' न कह आदमी को विनिश्चय-महामात्य (न्यायाधीश) के हाथ में दे देते थे। वह विचार करता, अपराधी न होने पर छोड़ देता, अपराधी होने पर अपने कुछ न कह व्यवहारिक (न्यायाध्यक्ष) को दे देता।" वह भी अपराधी जानने पर सूत्रधार को दे देता।""""वह भी विचार कर निरपराध होने पर छोड़ देता, अपराधी होने पर अष्टकुलिक को दे देता। वह भी वैसा ही करके सेनापति को, सेनापति उपराज (उपाध्यक्ष) को, और उपराज राजा (गणपति) को दे देता / राजा विचार कर यदि अपराधी न होता तो छोड़ देता और अपराधी होने पर प्रवेणि पुस्तक (दण्डविधान) बंचवाता / प्रवेणि-पुस्तक में लिखा रहता, कि अमुक अपराध का अमुक दण्ड है / अपराध को उससे मिलाकर दण्ड दिया जाता।" __ अपराधी के अपराध के सम्बन्ध में न्याय करने के लिये कितना ध्यान रखा जाता, वह इस उद्धरण से मालूम होता है। इससे यह भी मालूम होता है कि वैशाली प्रजातन्त्र की अपनी प्रवेणि-पुस्तक या दण्डविधान भी था, जिसका बड़ी कड़ाई से अनुसरण किया जाता था। वर्षकार बुद्ध के मुख से वज्जियों के बारे में अपने अनुकूल कोई बात नहीं सुन सका। उसने लौट कर अजातशत्रु से कहा "श्रमण गौतम (बुद्ध) के कथन से तो वज्जी को किसी प्रकार लिया नहीं जा सकता / अच्छा तो उपलापन (घूस-रिश्वत) और आपस में फूट पैदा करने से काम बनाया जाय / " अजातशत्रु और उसके कुटिल मंत्री ने भेद (फूट) नीति को ही पसन्द किया। वर्षकार ने सलाह दी-"महाराज ! परिषद् में वज्जियों की बात उठाओ। मैं कहूँगा उनसे क्या लेना है, रहने दो, वज्जी के शासक अपनो खेती और वाणिज्य से जीयें।" राजा और मन्त्री ने षड्यन्त्र किया; दोनों की मिली-भगत रही। वर्षकार वज्जियों का पक्षपाती बनकर राजसमा से निकल गया / उसकी ओर से वज्जियों के पास भेजी जाती चीज पकड़ी गयी / राजा ने उसे इस अपराध में बन्धन-ताड़न न करा, शिर मुड़ा, नगर से निकाल 1. वही (पृष्ठ 118)
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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