SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2218 Homage to Vaisalt तथागत द्वारा प्रतिष्ठित पवित्र धर्म एक हजार वर्ष कायम रहता। मगर चूंकि स्त्रीजाति को संघ में प्रवेश करने की आज्ञा दी गयी है, इस कारण से हमारा यह पवित्र धर्म अब केवल पांच सौ वर्ष तक ही जीवित रहेगा।" कुछ जमाने के बाद बुद्धदेव समझ गये कि उनकी अस्सी वर्ष की उम्र का अन्तिम काल आ गया है। एक दिन उन्होंने आनन्द को साथ में लेकर चापाल चैत्य में बैठक की और यहीं पर अपने निर्वाण-मुहूर्त की भविष्यवाणी की। बौद्धधर्म के शैतान-मार-को सम्बोधित करके उन्होंने कहा- "ऐ मार ! शान्त हो। आज से तीन महीने के अन्दर ही मैं अपना निर्वाण-लाम स्वयं ही करूँगा।" आनन्द को यह संवाद देने के बाद भगवान बुद्ध ने वैशाली नगर को छोड़ कर कुशीनारा की यात्रा की। ___ यात्रा आरम्म करने के पहले एक स्थान पर खड़े होकर बुद्ध ने वैशाली की ओर अन्तिम दृष्टिपात किया और आनन्द से कहा-“हे आनन्द ! मेरा यह अन्तिम वैशाली-दर्शन है, चूंकि मैं अब वैशाली फिर नहीं लौटूंगा।" "भगवान् वैशालीवनं अविसरण दक्षिणेन सर्वकायेन नागावलोकितेन व्यवलोकयति / / इदं आनन्द तथागतस्य अपश्चिमं वैशालीदर्शनम् / न भूयो आनन्द तथागतो वैशाली आगमिष्यति // " . भगवान बुद्ध के ये वचन वैशाली नगर की गली-गली में बिजली की तरह फैल गये, और उस समय इस ढंग की एक गाथा भी तैयार हो गयी- "इदं अपश्चिमं नाथ वैशाल्यास्तव दर्शनम् / न भूयो सुगतो बुद्धो वैशाली आगमिष्यति // " . जिस स्थान पर खड़े होकर महात्मा बुद्ध ने वैशाली की ओर आखिरी दृष्टिपात किया था, उस स्थान पर वैशाली के नगरनिवासियों ने एक स्तूप का निर्माण करके इस घटना को स्मरणीय बनाने की कोशिश की। सातवीं शताब्दी में जब चीन का परिव्राजक ह्वेनसांग वैशाली आया था, तब उसने उस स्तूप को देखा था। बुद्धदेव जब कुशीनारा के रास्ते पर आगे बढ़े, उस समय वैशाली नगर के भक्त लिच्छवियों ने उनका अनुसरण करना चाहा। बुद्धदेव के मना करने के बाद भी उन्होंने नहीं माना / तब बुद्धदेव ने तुरत अपनी माया के बल से एक विशाल नदी की सृष्टि की, जिसका किनारा बहुत ऊंचा था और जिसमें भयंकर लहरें उठ रही थीं। इस कारण वे लोग आगे नहीं बढ़ सके। तब बुद्धदेव ने उन लोगों पर कृपा करके उनको अपने पिण्डपात्र का दान किया। उन लोगों ने उस पिण्डपात्र की कहानी को एक शिलास्तम्भ पर लिख कर हमेशा के लिये उस स्मृति को कायम रखा / फाहियान ने उस स्मृतिस्तम्भ को देखा था। कनिष्क राजा ने जब उत्तर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया, तब उसने अपनी राजधानी
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy