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________________ . - वैशाली की महत्ता' प्रोफेसर ओ० सी गांगुली, कलकत्ता - आप लोग जानते हैं कि यह उत्सव हमारे प्राचीन संस्कृति-केन्द्र को जातीय जीवन में जाग्रत कर रखने के लिए मनाया जा रहा है। यह संस्कृति केन्द्र हमारे भारत के दो महान् धर्मों-अर्थात् जैन और बौद्ध धर्मों-की पवित्र स्मृति से आज भी उज्ज्वल हो रहा है। इस संस्कृति में मानो परम्परा से आज तक युगों की लम्बी सड़क पर महावीर और बुद्धदेव इन दोनों महात्माओं की पदध्वनि सुनाई दे रही है। इन दोनों महापुरुषों के शक्तिमान् व्यक्तित्व ने भारत की आध्यात्मिक संस्कृति की प्रतिमा को भारतीयों के मनमन्दिर में सदा के लिए अमर बना दिया है। सिर्फ भारतीयों के हृदय में ही नहीं, बल्कि विश्व के मानव-समाज के हृदय में भी; क्योंकि सारे संसार के इतिहास में ऐसा हृदयविदारक, घोरहिंसापूर्ण और मनुष्य के हृदय को एवं मनुष्यता को ऐसी निर्दयता के साथ टुकड़ा-टुकड़ा करनेवाला सर्वनाश इसके पहले कभी भी उपस्थित नहीं हुआ था। इस कठिन बीमारी को दूर करने के लिए उन दो महापुरुषों की मूल्यवान् वाणी संसार में प्रेम और एकता की सृष्टि करती है। आज स्न दो महापुरुषों की विश्वशान्ति की अमरवाणी की संसार को इतनी अधिक जरूरत है, जितनी इसके पहले कभी भी नहीं थी। . हमारे देश के पूर्वकाल के मेले और विभिन्न धार्मिक उत्सव जो बराबर परम्परा से आज तक होते चले आ रहे हैं उनका मूल उद्देश्य है जातीय जीवन की एकता को गणतन्त्र के विस्तृत क्षेत्र में प्रतिष्ठित करना। यह सुन्दर भाव से भरा हुआ मिलन समस्त क्षेत्रों में एक 1. प्रथम वैशाली महोत्सव में पहली अप्रैल 1945 60 को दिया गया भाषण। ..
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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