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________________ विकासोन्मुख वैशाली 473 वैशाली-आन्दोलन का प्रारम्भ से ही सुपाठ्य सामग्री को विद्वानों तथा साधारण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का उद्देश्य रहा। सर्वप्रथम उसने प्रथम वैशाली-महोत्सव के अवसर पर 'वैशाली' नामक एक लेख-संग्रह निकाला। 1948 में 'वैशाली-अभिनन्दन-ग्रन्थ' (Homage to Vatsalt) का प्रकाशन किया गया, जिसकी विद्वन्मण्डली तथा प्रकाशन-जगत् में बड़ी प्रशंसा हुई। इसमें हिन्दी और अंग्रेजी में उच्चकोटि के विद्वानों के वैशाली सम्बन्धी मौलिक लेख थे तथा वैशाली पर प्रकाश डालनेवाली अन्य सामग्री भी सम्मिलित थी। संघ ने 1950 में अपने द्वारा करायी गयी वैशाली की खुदाई का विवरण अंग्रेजी में प्रकाशित किया और हिन्दी में 'पुरातत्त्व की दृष्टि में वैशाली' नामक एक दूसरी पुस्तक भी निकाली। अंग्रेजी में वैशाली संग्रहालय का क्रमबद्ध प्रामाणिक कैटेलग वैशाली का संक्षिप्त इतिहास सहित पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया। हिन्दी में भी जनसाधारण को दृष्टि में रखकर 'वैशाली पथ-प्रदशिका' नाम से एक गाइड निकाला गया। वैशाली महोत्सवों के अवसर पर दिये गये भाषण भी बहुधा अलग-अलग पुस्तिकाओं के रूप में प्रकाशित होते रहे हैं / संघ ने 'महावीर-वाणी, बुद्ध-वाणी' नामक फोल्डर भी निकाला है। वैशाली में यात्रियों के लिए पिक्चर पोस्ट कार्ड का एक सेट भी प्रकाशित किया गया है, जिसमें वैशाली के मुख्य स्मारकों और ध्वंसावशेषों के चित्र हैं। कई वर्ष पूर्व श्री जगदीश चन्द्र माथुर द्वारा लिखित 28 पृष्ठों का एक अभिनेय रूपक भी संघ द्वारा प्रकाशित किया गया है। हाल में इसने 'वैशाली-दिग्दर्शन' नामक पुस्तक निकाली है। वैशाली-आन्दोलन की प्रेरणा के फलस्वरूप अन्य व्यक्तियों तथा संस्थाओं द्वारा भी इस विषय पर साहित्य प्रकाशित किया जाने लगा तथा विश्वविद्यालयों में शोध-प्रबन्ध भी प्रस्तुत किये जाने लगे। वैशाली-संघ ने प्रारम्भ से ही लोक-गीतों तथा लोक-संस्कृति की अन्य अभिव्यंजनाओं को प्रोत्साहन दिया, जिससे लोक-संस्कृति का संरक्षण और उन्नयन हो / इसलिए लोकोत्सव-माला नाम से एक ऐसे कार्यक्रम की योजना बनायी गयी, जिसके अन्तर्गत वैशाली क्षेत्र के लोक-गायकों को समय-समय पर अपनी कला प्रस्तुत करने और प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का अवसर मिलता रहे। स्थानीय लोक-गीत-मण्डलियों में प्रमुख रही है मछुओं की मण्डली जिसके गायन की प्रशंसा सब कोई करते हैं। सन् 1944 तक वैशाली क्षेत्र अत्यन्त उपेक्षित इलाका था, जहाँ न तो यातायात के साधन थे, न आगन्तुकों के लिए ठहरने का स्थान, न बिजली और न अन्य सुविधाएँ / वैशाली-संघ ने सरकारी अधिकारियों का इस ओर ध्यान दिलाया और बराबर इन सुविधाओं के लिए आवेदन-पत्र भेजता रहा। इन प्रयासों के फलस्वरूप वंशाली क्षेत्र की परिस्थिति अब बहुत बदल-सी गयी है। हाजीपुर और मुजफ्फरपुर दोनों से वैशाली तक पक्की सड़कें जाती हैं और 80 गाँवों के क्षेत्र में जगह-जगह प्रमुख स्थानों को जोड़नेवाली सड़कें भी बना दी गयी हैं / सन् 1956 में वैशाली में बिजली भी आ गयी। - वैशाली के तत्कालीन जमीन्दार दीवान बहादुर बदरी नारायण सिंह ने वैशाली-संघ के नाम पौने सात कट्ठा जमीन हस्तान्तरित कर दी थी। इसपर बंशाली-संघ ने बिहार 60
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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