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________________ विमलकीर्ति : वैशाली की एक विस्मृत विभूति 411 करने लगे। आपको इस प्रकार ध्यानरत होना चाहिए, जिससे संसार क्षेत्र के क्लेशों के ग्रहण किये बिना भी आप निर्वाण और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं / भदन्त, इस प्रकार जो ध्यानरत रहते हैं, उनको ध्यानरत कहते हैं।' भगवन्, लिच्छवि विमलकीति के इसप्रकार के धर्मोपदेश को सुनकर और उसका प्रतिवाद करने में अपने को असमर्थ पाकर मैं चुप रह गया। यही कारण है कि मैं उस सत्पुरुष के पास जाने के लिए उत्साहित नहीं हूं।" उसके बाद भगवान् बुद्ध ने महामौद्गल्यायन, महाकाश्यप, संभूति, पूर्ण मैत्रायणीपुत्र, महाकात्यायन, अनिरुद्ध, उपालि, राहुल, आनन्द, मैत्रेय, प्रभाव्यूह, जगतीधर और सुदत्त (अनाथपिण्डक) से विमलकीर्ति के पास जाने के लिए अनुरोध किया और सबने बारी-बारी से विमलकीति से सम्बन्धित अपना एक-एक संस्मरण सुनाकर वैशाली के इस गहपति के पास जाने में अपनी असमर्थता प्रकट की। तब भगवान ने मंजुश्री कुमारसंभूत को विमलकीति के पास भेजा। मंजुश्री और आचार्य विमलकीर्ति के बीच जो धर्मसंलाप हुआ, वह सत्र के पांचवें से नवम परिवर्त तक विस्तार से वणित है। विमलकीर्ति के जीवन पर प्रकाश डालते हुए इस सूत्र में कहा गया है :-उस समय वैशाली महानगरी में विमलकीर्ति नाम का एक लिच्छवि रहता था। उसने पूर्व काल के तथागतों की सेवा करके कुशलमूलावरोपन प्राप्त किया था। वह महान् अभिज्ञाओं से क्रीड़ा करता था। उसने मार को पराजित किया था और गम्भीर धर्म के मार्ग पर चलता था। वह उपायकौशल्य में पूर्णता प्राप्त करने के कारण प्राणियों के विचारों और कार्यों का ज्ञाता था। उसकी बुद्धि सागर के समान गम्भीर थी। अनाथों और असहायों के भरणपोषण के लिए उसके पास अक्षय सम्पत्ति थी। दुराचारी और दुःशीलजनों के बीच वह पवित्र और शीलवान जीवन बिताता था। वह क्रूर, निर्दय और विद्वेषी जनों के बीच शान्ति और दम से सम्पन्न था। आलसी और अकर्मण्य लोगों को प्रेरित करने के लिए वह उत्तप्त वीर्यवाला था। विक्षिप्त व्यक्तियों की सहायता के लिए वह ध्यान, स्मृति और समाधि का अभ्यास करता था। यद्यपि श्वेतवस्त्र पहनता था, तथापि वह कामलोक, रूपलोक और अल्पलोक से सर्वथा दूर रहता था। यद्यपि उसको एक पुत्र, एक पत्नी और अन्तःपुर था, तथापि वह ब्रह्मचर्य का जीवन व्यतीत करता था। यद्यपि वह रत्नजटित आभूषणों से अलंकृत रहता था, तथापि वह सत्पुरुषों के सद्गुणों से सुशोभित था। यद्यपि वह जुआडिओं के बीच रहता था, तथापि उसका उद्देश्य उन्हें सत्पथ पर लाने का रहता था। यद्यपि वह सभी धर्माचार्यों के साथ गवेषणापूर्ण धर्मसंलाप करता था, तथापि भगवान बुद्ध के प्रति उसकी अटूट आस्था थी। विमलकीति-निर्देश-सूत्र' का प्रकाशन वैशाली में आम्रपाली के सुप्रसिद्ध आम्रकानन और आचार्य विमलकीर्ति के निवासस्थान पर हुआ था। इस महत्त्वपूर्ण महायानी सूत्र में प्राणिमात्र के लिए महाकरुणा का महान आदर्श निरूपित किया गया है। एक अर्हत् केवल अपनी मुक्ति के लिए ही प्रयत्नशील रहता है। वैयक्तिक निर्वाण ही उसके जीवन का चरम लक्ष्य होता है। किन्दु बोधिसत्त्व निर्वाण का सुख इसलिए त्याग देता है कि वह अन्य
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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