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________________ Homage to Vaisana धज्जियों के सात 'अपरिहाणिक' धर्म दुखदेव ने भानन्द से पूछा--क्यों आमम्य, तुमने क्या सुमा है, क्या बज्जियों के जुटाव (सभिपात) बार-बार और भरपूर होते हैं (अर्थात् उनमें बहुत लोग जमा होते हैं) ? ' -श्रीमान् मैंने ऐसा ही सुना है कि वज्जी बार-बार इकट्ठे होते और उनके जुटाव भरपूर होते हैं। -जब तक आनन्द, वज्जियों के जुटाव बार-बार और भरपूर होते हैं, तब तक आनन्द, उनकी बढ़ती की ही आशा करनी चाहिए न कि परिहाणि की। इसी प्रकार बुद्ध ने आनन्द से निम्नलिखित प्रश्न और पूछे-क्यों आनन्द, तुमने क्या सुना है, क्या वज्जी इकट्ठे जुटते, इकट्ठे उठते (उद्मम करते), और इकठे वज्जीकरणीयों (अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों) को करते हैं ? क्या वज्जी (सभा द्वारा) बाकायदा कानून बनाये विना कोई आज्ञा जारी नहीं करते, बने हुए नियम का उच्छेद नहीं करते, और नियम से चले हुए पुराने वज्जीधर्म (राष्ट्रीय कानून और संस्थाओं) के अनुसार मिल कर बर्त्तते हैं ? क्या वज्जी वज्जियों के जो वृद्ध-बुजुर्ग हैं उनका आदर-सत्कार करते, उन्हें मानते-पूजते और उनकी सूनने लायक बातों को मानते हैं ? क्या वज्जी जो उनकी कुलस्त्रियाँ और कुल-कुमारियाँ हैं उन पर जोर-जबर्दस्ती तो नहीं करते? क्या वज्जी जो उन वज्जियों के अन्दरले और बाहरले बज्जी चैत्य (जातीय मन्दिर-अरहतों की समाधियाँ) हैं, उनका आदर-सत्कार करते और उनको पहले दी हुई धार्मिक बलि को नहीं छीनते ? क्या वज्जियों में अरहतों की रक्षा करने का भाव नली प्रकार है ? क्या बाहर के अरहत उनके राज्य (विजित) में आ सकते हैं ? और आये हुए सुगमता से विहार करते हैं ? इन सातों प्रश्नों का उत्तर बुद्धदेव को वग्जियों के पक्ष में मिला और इसलिए उन्होंने प्रत्येक उत्तर सुनकर उनके अभ्युदय और वृद्धि की ही आशा प्रकट की। - बुद्धदेव जब वज्जि-रट्ठ में थे, तब स्वयं उन्होंने वज्जियों को ये सप्त अपरिहाणिक धर्म अर्थात् अवनति न होने की सात शर्ते' समझायी थीं। जयचन्द्र विद्यालंकार [भारतीय इतिहास की रूपरेखा, जिल्द 1, द्वितीय संस्करण (इलाहाबाद, 1941), पृष्ठ 452-453]
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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