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________________ 290 Homage to Vaisali प्रा०-यात्री ? बसाढ़ में यात्री ? क्या यह तीर्थस्थान है जो तुम यहाँ यात्रा करने आये हो ? प०-वसाद? यह जगह बसाढ़ है ? ग्रा०-वाह मई, इतना भी नहीं जानते ? यह है मुजफ्फरपुर जिले का गांव बसाढ़। ५०-है।....."मैं बसाढ़ के इन खंडहरों, इस मग्न गढ़, इन सूखे तालों में अपने खोये हुए तीरप को खोज रहा हूँ माई! ग्रा०-कौन तीरथ ? ५०-याली ! जिसे तुम बसाढ़ कहते हो, पहले वह वैशाली नगरी यो। "वैशाली इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का, वैशाली अतीत-गह्वर में गुंजन तलवारों का, वैशाली ! जन का प्रतिपालक, गण का बादि विधाता / जिसे ढूंढ़ता देश आज, उस प्रजातन्त्र की माता।" . प्रा.-मैं तो यह सब नहीं जानता। प०-मैं तुम्हें दिखाऊंगा। चलोगे मेरे साथ ? ग्रा०-कहाँ ? प०-दूर-सदियों पीछे। मैं समय का पथिक हूँ। अपनी पलकों के पांवड़ों से युगों को नापता हूँ। मेरे साथ चलो आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व, जब गंगा, गंडक हिमांचल से पाबद्ध इस सुरम्य प्रान्त में लिच्छवि निवास करते थे। यह एक तेजस्वी क्षत्रिय जाति थी जिसने वैशाली में ईसा से लगभग 700, 800 वर्ष पूर्व जनतन्त्र को चलाया; यों तो पुराणों के अनुसार सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के वंशज राजा विशाल ने इस नगरी की स्थापना की थी। वाल्मीकीय रामायण में भी लिखा है कि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी जाते हुए राम और लक्ष्मण ने दूर से वैशाली के उन्नत शिखरों और भव्य भवनों को देखा। परन्तु लिच्छवियों द्वारा वैशाली का उत्थान हुआ / महाभारत के समर के उपरान्त अब उत्तरी भारत की राज्यप्रणाली खंड-खंड हो रही थी, उस समय गंडक-घाटी में नौगण या जनतान्त्रिक जातिसमूहों का राज्य था जिनमें प्रमुख थे वैशाली के लिच्छवि और कुशीनारा के मल्ल ।"""इन नौ गणों को एक सूत्र में बांधनेवाला संघ वज्जिसंघ कहलाता था। वैशाली इसी वज्जिसंघ का केन्द्र थी। वज्जिसंघ ने नो गणों को आंतरिक शासन में पूरी आजादी दे रखी थी। केवल बाहरी आक्रमण और विदेशी नीति का अधिकार संघ के हाथ में था। संघ में सब गण बराबर थे, न कोई सम्राट् था, न कोई महाराजाधिराज / .. ग्रा०-उस समय भी पंचायती राज था क्या पथिक ? १०-हां, आज हम उसे भूल गये हैं। लेकिन उन नौ गणों में से वैशाली के लिच्छविगण की शासनप्रणाली सबसे अधिक सुव्यवस्थित थी। उस समय वैशाली में लिच्छवियों के 7707 कुटुम्ब थे; हरेक कुटुम्ब का प्रमुख व्यक्ति गणसमा का सभासद् होता था और गणराजन् कहलाता था। लेकिन गणसभा की कार्यवाहक समिति एक और छोटी समा
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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