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________________ प्रजातन्त्री वैशाली 275. अथवा महाकाव्यों में वंशावली-क्रम नहीं मिलता और बुद्ध-युग के पहले तक वैशाली का इतिहास बिलकुल अन्धकार पूर्ण है। कब और किस प्रकार वैशाली ने गणतन्त्र को अपनाया ? डॉ. एच. सी. रायचौधरी ने मिथिला में राजतन्त्र से प्रजातन्त्र में परिवर्तन होने का कारण बतलाया है। किन्तु वैशाली में इस प्रकार के किसी परिवर्तन के सम्बन्ध में हमें कुछ मालूम नहीं है। फिर भी इतना तो सच ही है कि लिच्छवि-प्रजातन्त्र का जन्म बुद्ध के बहुत पहले हो चुका था। बुद्ध ने स्वयं वज्जियों की बहत पहले से आती हई प्राचीन संस्थाओं की प्रशंसा खले शब्दों में की है। यह भी सम्भव है कि महाभारत यद्ध के समय में लिच्छवि-गण का अस्तित्व रहा हो / जब भीष्म गणों के नाश के सामान्य कारणों का वर्णन करते हैं और उनकी समृद्धि एवं जीवित रहने का कारण उनके संघ जीवन की अविच्छिन्न परम्परा बतलाते हैं तब उनकी दृष्टि में अवश्य ही लिच्छवि और वज्जि-संघ की अन्य जातियां हैं। इससे यह परिणाम निकाला जा सकता है कि वैशाली-गण की स्थापना वैशाली के राजा सुमति का आतिथ्य स्वीकार करने वाले" रामायण के नायक राम और महाभारत-युद्ध के बीच के समय में हुई। रामायण की रचना की तिथि जो कुछ भी रही हो, इसमें कोई सन्देह नहीं कि इसमें चित्रित ऐतिहासिक घटनाएं महाभारत युद्ध से बहुत पहले घटित हुई थीं। राम के पुत्र कुश के बाद से बृहदल तक, जो उस वंश का अन्तिम राजा था और महाभारत-युद्ध में अभिमन्यु द्वारा मारा गया, अट्ठाईस राजाओं की सूची पुराणों में मिलती है / उस युद्ध की निश्चित तिथि का ढूंढ़ निकालना किसी प्रकार भी आसान नहीं है / किन्तु महाकाव्यों एवं पुराणों के प्रमाणों के आधार पर डा. हेमचन्द्र रायचौधरी का विचार है कि अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित का 1. एच० सी० राय चौधरी, उल्लिखित, पृ० 52-53 / ' 2. देखिये के० पी० जायसवाल, हिन्दू पॉलिटी, पृ० 48 / वैशाली में बुद्ध के आगमन के लिए देखिये, राधाकुमुद मुकर्जी, मेन ऐण्ड थॉट इन ऐंशियण्ट इण्डिया, पृ० 62-63 / 3. देखिये जर्नल ऑव बिहार ऐण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, सितंबर 1915, पृ० 176-77 / 4. डॉ० बेनीप्रसाद का अनुमान है कि भीष्म ने जिन गणों का उल्लेख किया है वे ऐसे प्रजातन्त्र थे जो "मुख्यतः हिमालय की तराई में कुछ समय के लिए फले-फूले थे।"(व व्योरी ऑव गवर्नमेष्ट इन ऐशियण्ट इण्डिया, पृ० 66) / किन्तु ऐसा अनुमान करने का कोई कारण नहीं है कि ये प्रजातन्त्र कुछ ही समय के लिए फले-फूले; प्रत्युत् भीष्म ने अपने समय के प्रजातन्त्रों के सम्बन्ध में संघ स्थापित करने और प्रजातन्त्र की अन्य स्वाभाविक विशेषताओं का जो उल्लेख किया है, उससे यह अनुमान किया जा सकता है कि उनका मतलब अन्य प्रजातन्त्रों के साथ-साथ लिच्छविगण से भी है। 5. एस० एन० सिंह, हिस्टरी आँध तिरहुत, पृ० 24 / 6. देखिये वी० रंगाचार्य, उल्लिखित, पृष्ठ 394-395 /
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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