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________________ भगवान महावीर : वैशाली की दिव्य विभूति 239 वैशाली के पश्चिम गण्डकी नदी बहती थी। यह नगरी बड़ी समृद्धिशालिनी थी। इसका भौगोलिक विस्तार भी न्यून न था। गण्डकी के पश्चिमी तट पर अनेक ग्राम थे जो वैशाली के 'शाखानगर' कहे जाते हैं / निम्नलिखित ग्रामों का परिचय मिलता है (1) कुण्डग्राम- इस नाम के दो ग्राम थे / एक का नाम 'ब्राह्मणकुण्डग्राम या कुण्डपुर' था जिसमें ब्राह्मणों की ही विशेष रूप से बस्ती थी। दूसरे का नाम 'क्षत्रियकुण्डग्राम' या जिसमें क्षत्रियों का ही प्रधानतया निवास था। इनमें दोनों क्रमशः एक दूसरे के पूर्व-पश्चिम में थे / थे दोनों पास ही पास। दोनों के बीच में एक बड़ा बगीचा था जो 'बहुसाल चैत्य' के नाम से विख्यात था। दोनों नगरों के दो-दो खण्ड थे। 'ब्राह्मणकुण्डपुर' का दक्षिण भाग 'ब्रह्मपुरी' कहलाता था, क्योंकि यहां ब्राह्मणों का ही निवास था। दक्षिण 'ब्राह्मणकुण्डपुर' के नायक ऋषमदत्त नामक ब्राह्मण थे, जिनकी भार्या का नाम 'देवानन्दा' था। ये दोनों पावनाथ के द्वारा स्थापित जैनधर्म के मानने वाले गृहस्थ थे। 'क्षत्रिय-कुण्डग्राम' के भी दो विमाग थे। इसमें करीब पांच सौ घर 'जाति' नामक क्षत्रियों के थे, जो उत्तरी भाग में जाकर बसे हए थे / उत्तर क्षत्रियकुण्डपुर के नायक का नाम सिद्धार्थ था। ये काश्यपगोषीय ज्ञातिक्षत्रिय थे तथा 'राजा' की उपाधि से मण्डित थे। वैशाली के तत्कालीन राजा का नाम था चेटक, जिनकी बहन त्रिशला का. विवाह सिद्धार्थ से हुआ था। इन्हीं त्रिशला और सिद्धार्थ के कनिष्ठपुत्र 'वर्धमान' थे, जिनका जन्म इसी ग्राम में हुआ था। (2) कर्मारपाम-प्राकृत 'कम्मार' कर्मकार का अपभ्रंश है। अतः कर्मार का अर्थ है मजदूरों का गांव अर्थात् लोहारों का गांव / यह गाँव भी कुण्डग्राम के पास ही था। महावीर प्रव्रज्या लेकर पहली रात को यहीं ठहरे हुए थे। (3) कोल्लाक संनिवेश यह स्थान पूर्वनिर्दिष्ट ग्राम के समीप ही था। कर्मारग्राम में विहार कर महावीर ने यही पारणा की थी / उपासकदशासूत्र के प्रथमाध्ययन में इस स्थान की स्थिति का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यह नगर वाणिज्यग्राम (जिसका वर्णन नीचे है) के तथा उस बगीचे के बीच में पड़ता था। (4) वाणिज्यनामयह जैनसूत्रों का 'वाणिज्यग्राम'-बनियों का गांव है / गण्डकी नदी के दाहिने किनारे पर यह बड़ी भारी व्यापारी मण्डी थी। ऐसा जान पड़ता है यहाँ बड़े-बड़े धनाउघ महाजनों की बस्ती थी। यहां के एक करोड़पति का नाम आनन्द गाथापति था जो महावीर के बड़े भक्त सेवक थे। आजकल की वैशाली (मुजफ्फरपुर जिले की बसाढ़पट्टी) के पास बनिया ग्राम है। बहुत सम्भव है कि यह गांव 'वाणिज्यग्राम' का ही प्रतिनिधि हो। बौद्धग्रन्थों के विशेषतः दीघनिकाय के अनुशीलन से पता चलता है कि बुद्ध के समय में वैशाली बड़ी समृद्धिशालिनी नगरी थी। उसमें 7 हजार 7 सौ 77 महलों के होने का उल्लेख स्पष्टतः उसे विशाल तथा समृद्ध नगर बतला रहा है / नगर के भीतर अम्बपाली नामक बड़ी ही धनाढप और गुणवती गणिका रहती थी। 6 या 7 बड़े-बड़े चैत्यों के नाम मिलते हैं
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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