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________________ 168 Homage to Vaisak ... उद्योगपति श्रीधान्तिप्रसाद जैन ने संस्थान के स्थापन के लिए जो दान दिया है, उसके लिए मैं उन्हें धर्मलाभ देता हूँ। और, मुझे तो बड़ी प्रसन्नता उस भूमि के मालिक के दान से हुई, जिसने भगवान् की जन्मभूमि, जो अहल्य करके पूज्य थी, दान देकर महान् यश और धर्म का अर्जन किया है / इतने पर भी मुझे इस बात का दुःख है कि अभी जैन-समाज अपने कर्तव्य- निर्वाह में पीछे है / इसका एक कारण उनकी अज्ञानता और प्रचार की कमी है। पर, यदि समृद्ध तथा पढ़ा-लिखा समाज भगवान के जन्मकल्याणक की पवित्र भूमि पर मन्दिर-निर्माण करा दे, तो निश्चय ही तीर्थयात्री यहाँ दर्शन-पूजन के लिए आने लगे और विस्मृत तीर्थ अपने योग्य गौरव को प्राप्त कर ले। जैनमात्र का यह कर्तव्य है और आशा है, इस दिशा से वह पीछे नहीं रहेगा / _ अन्त में आप सभी श्रोताओं को मैं धर्मलाभ देता है।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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