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________________ वैशाली की महिमा डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी महान् है यह नगरी वैशाली, महान् है इसकी परम्परा, जैसा कि आपने सुना है / हिन्दू-धर्म के सर्वश्रेष्ठ पुरुष मर्यादापुरुषोत्तम राम ने इसको पवित्र कहा है। जैनधर्म के प्रवर्तक या आचार्य, प्रवर्तक तो नहीं; क्योंकि उनके पहले भी कई प्रवत्तंक आचार्य हो चुके हैं, महावीर की तो यह जन्मभूमि ही रही है। भगवान् बुद्धदेव के मन में जब वैराग्य का उदय, हुआ तब पहले योग और ज्ञान की शिक्षा उन्होंने इसी नगरी में प्राप्त की। बुद्धत्व-प्राप्ति के बाद भी वे कई बार यहाँ पधारे / यह वही नगरी है, जिसमें हमारी परम्परा के सर्वश्रेष्ठ पुरुष बराबर आते रहे हैं / उनकी चरण-रज से पवित्र इस भूमि में आने पर आदमी थोड़ा भावुक हो जाता है। यहां का एक-एक धूलिकण, जिसमें भगवान् बुद्ध, महावीर और विश्वामित्र जैसे महान् पुरुषों के चरण की धूल लगी हुई है, न जाने कहाँ से क्या सन्देश देता है। आज भी यह मेला है, उत्सव है यह शायद अपने ढंग का भारतवर्ष का अनोखा मेला है। मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई और मैं वैशाली-संघ के सदस्यों की, उनके उद्योग की प्रशंसा करता हूँ कि उन्होंने इस स्थान को जाग्रत् करने का प्रयास किया है, तथा यहाँ के लोगों में इतिहास के प्रति चेतना जाग्रत् की है / यहाँ उपस्थित प्रत्येक नर-नारी के चित्त में एक आनन्द है, एक उल्लास है, हजारों वर्ष के उत्तराधिकारी होने का गौरव उनमें है, यह देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई / इस साल के उत्सव को मैं बहुत महत्त्वपूर्ण मानता हूँ / हमें यह नहीं भूलना चाहिए, अभी से कुछ क्षण पहले जैसा कि माथुर साहब ने बतलाया कि चौदह वर्ष पहले से ही यहां के लोग परिचित थे कि वे कितनी बड़ी परम्परा के उत्तराधिकारी हैं, परन्तु चौदह वर्ष पहले भी कुछ पढ़े-लिखे लोग ही जानते थे कि वैशाली नाम की कोई जगह है, लेकिन आज से सौ सवा सौ वर्ष पहले लोग इतना भी नहीं जानते थे / आज से ठीक सौ वर्ष पूर्व सन् 1861 ई० में यहाँ कनिंघम साहब पधारे थे, कनिंघम उन विदेशी ज्ञानियों में हैं, उन ज्ञान-पिपासुओं में हैं, जिन्होंने हमारे देश की प्राचीन सभ्यता के उद्धार में बड़ा काम किया है / इतनी लगन के साथ, इतने साहस के साथ, इतने दर्द के * अट्ठारहवें वैशाली महोत्सव (17 अप्रैल 1962) में प्रमुख वक्ता के रूप में किया गया भाषण। 20
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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