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________________ प्राकृत साहित्य और वैशाली 107 झने की क्षमता और अपने में मिलाने की शक्ति ही समन्वय दृष्टि है। महावीर की समन्वयात्मक दृष्टि भारतीय धर्म तथा दर्शनशास्त्र के लिये बहुत बड़ी देन है। इस सिद्धांत की गहराई और इसके उच्च व्यावहारिक पहलू को हम महावीर के जीवन से ही समझ सकते हैं। इन सभी कारणों से, मैं समझता हूँ, वैशाली में प्राकृत अनुसन्धानशाला की स्थापना बहुत ही सामयिक है। मैं आशा करता हूँ कि यहाँ जो अध्ययन होगा और जो खोज की जायेगी, उसके परिणाम स्वरूप जहाँ भारतीय इतिहास की टूटी हुई श्रृंखलाओं के जुड़ने की आशा है, वहां हम एक अत्यन्त प्रतापी और यशस्वी विभूति की जीवन-कथा तथा विचारधारा का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर अपने आपको कृतकृत्य कर सकेंगे। मुझे विश्वास है कि यह प्राकृत अनुसन्धानशाला, जिसके शिलान्यास का दायित्व आपने मुझे सौपने की कृपा की है, शीत्र बनकर तैयार हो जायगी / मुझे इसमें सन्देह नहीं कि कालान्तर में इस शाला के कारण वैशाली फिर विद्या और संस्कृति का केन्द्र बन जायगी। बिहार सरकार और दूसरे जिन लोगों ने इस अनुसन्धानशाला की स्थापना में आर्थिक तथा अन्य प्रकार की सहायता की है, ऐसी मेरी आशा है।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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