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________________ 587 वहाँ से वापिस आते हैं तब उन्हें इनाम के रूप में ट्रोफी आदि लेकर आते हैं और हमारे लिए अच्छी चीजें लाते हैं तो हमें खुशी होती है। हम लोग हमेशा प्रयत्न करेगें की हमें हमारे दादाजी जैसा सम्मान प्राप्त हो और मेरे दादाजी का आशीर्वाद तो साथ ही है। किंजल (पौत्री) । मेरे दादाजी डॉ शेखरचन्द्र जैन राष्ट्रीयस्तर से सम्मानित हो रहे हैं यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है। साथ ही साथ मेरे दादाजी का अभिनन्दन हो रहा है यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात है और मज़े की बात तो यह है कि मेरे दादाजी डॉ. शेखरचन्द्र जैन और दादीजी आशादेवी जैन की ५१वीं शादी की सालगिरह भी उसी दिन है। मेरे | दादाजी बहुत अच्छे हैं। मेरे दादाजी थोड़े कड़क स्वभाव के हैं। वह शिस्त के आग्रही हैं। वे कभी-कभी हमें डाँटते | हैं पहले मुझे अच्छा नहीं लगता है, पर फिर लगता है कि दादाजी हमारी भलाई के लिए ही तो डाँटते हैं। दादाजी को खूब सारे एवार्ड मिलते हैं। कभी देश में तो कभी विदेश में। मेरे दादाजी के पास अनेक एवार्ड हैं। मेरे दादाजी हर साल विदेश जाते हैं। वहाँ से वह देर सारी चॉकलेट और खिलौने लाते हैं। मेरे दादाजी को ज्ञानमती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। दादाजी का ऐसा सम्मान होते देख, ऐसे पुरस्कार मिलते देख मुझे भी ऐसा लगता है कि, बड़े होकर मेरा भी ऐसा सम्मान हो। मेरे दादाजी मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मुझे मेरे दादाजी बहुत अच्छे लगते हैं। मेरे दादाजी हमेशा मुझे अलग-अलग नाम से बुलाते हैं। मुझे गर्व है कि डॉ. शेखरचन्द्र जैन मेरे दादाजी हैं। मेरे दादाजी जैसा कोई नहीं हो सकता। मेरे दादाजी दुनिया के सबसे अच्छे दादाजी हैं। निशांत (पौत्र) । मुझे बहुत खुशी हो रही है कि आपको जैन समाज की तरफ से पुरस्कार प्राप्त हो रहा है। मुझे इस बात से बहुत अच्छा लगता है कि हर महिने आपकी नई-नई तीर्थंकर वाणी निकलती है और आप हर साल विदेश जाकर प्रवचन देते हैं। ___ जब दादाजी मुझे डाँटते हैं तब बहुत ही बुरा लगता हैं पर बाद में लगता है कि दादाजी मेरी भलाई के लिए ही डाँटते हैं। मैं चाहता हूँ कि दादाजी को आगे भी इसी तरह समाज में सम्मान प्राप्त होता रहे। मैं भी बड़ा होकर . दादाजी की तरह बनूँगा। मुझे भी दादाजी के जैसा सम्मान और ज्ञान प्राप्त हो। निसर्ग (पौत्र)
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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