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________________ संपादकीय VII अभिनन्दनीय मनीषी डॉ. शेखरचन्द्र जैन भारत की भौगोलिक सीमाओं में एक चिर-परिचित नाम है। भारत के बाहर-पाश्चात्य जगत् में भी वह एक बहुचर्चित विश्रुत मनीषी हैं। मूलतः बुन्देलखण्ड की वीर प्रसविनी वसुन्धरा के वासी और शैशव में सुसंस्कारों को आत्मसात् किये इनके यौवन का आरोह श्रीमद्रायचन्द्र और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रत्युत्पन्न-सम्पन्ना साधनामयी नैष्टिक मेदिनी गुजरात प्रदेश में कुछ इस प्रकार से हुआ कि यह वहीं के हो गये। बुन्देली माटी के सोंधेपन के समवाय के समवेत खुरई (जिला-सागर, म.प्र.) के श्री पार्श्वनाथ जैन गुरुकुल के सुरम्य और सुसंस्कृत परिवेश में जिस मेधावी छात्र के व्यक्ति का सृजन, विकास और समुन्नयन 'शेखरचन्द्र' के रूप में हुआ, उसने अपनी प्रशस्त मेघा, ऊर्जस्वित् ऊर्जा, प्रौढ निष्ठा और धीरप्रशांत विवेक का समीचीन पल्लवन एवं सन्निवेशन भारतीय वाङ्मय में सन्निविष्ट बहुमूल्य रनों-जीवनमूल्यों तथा उदात्त सिद्धान्तों का संचयन का प्रभावक अभिव्यक्ति प्रदान करने में केन्द्रित किया। परिणामस्वरूप विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में महत्त्वपूर्ण स्थान पर अधिष्ठित जैन संस्कृति के महनीय तत्त्वों अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्तवाद, कर्मसिद्धान्त, मृत्यु महोत्सव, सल्लेखना प्रभृति विविध विषयों को आम-आदमी की भाषा का अमलीजामा पहिनाया। __कोमलकान्त पदावली से सम्पुष्ट प्राञ्जल परिष्कृत भाषा में डॉ. शेखरचन्द्र जैन के सार्थक कृतित्त्व में भगवती श्रुत देवता के अक्षय्य भाण्डार को श्री समृद्ध भी किया है। वे देव-शास्त्र-गुरु के प्रति समानभाव से आस्थावान् विवेचक हैं। इसीलिए सर्वत्र समाद्रत हैं। - डॉ. शेखरचन्द्र जैन ने अपने प्राध्यापकीय कार्यक्षेत्र के अतिरिक्त बहुआयामी प्रवृत्तियों से समाजसेवा, सांस्कृतिक प्रभावना, ग्रन्थलेखन और सम्पादन, संस्था संचालन, 'तीर्थंकर वाणी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका का प्रकाशन प्रभृति अनेक गतिविधियों के द्वारा सम्पूर्ण राष्ट्र में उल्लेखनीय स्थान बनाया है। वह कर्म ही जीवन है और 'चरैवेति चरैवेति' इस महर्षि वाक्य को दृष्टिपथ में रखकर अनवरत कर्म-निरत हैं। डॉ. शेखरचन्द्र के व्यक्तित्त्व में- 'रहे अडोल अकम्प निरन्तर'- इस भावना की अभिव्यक्ति निरन्तर होती है। अभिनन्दनीय के अभिनन्दन की श्रृंखला परिणाम स्वरूप उन्हें विविध प्रसंगों में प्रवचनमणि, वाणीभूषण आदि अलंकरणों, प्रशस्तियों और अखिल भारतीय अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। ये सभी उपक्रम उनके व्यक्ति, विचारों और कार्यों के सामस्त्येन निदर्शन नहीं हैं। अतः अखिल भारतीय अभिनन्दन की योजना मनीषी डॉ. शेखरचन्द्र जैन के व्यक्तित्व, वैदुष्य और अवदान के निरूपक अखिल भारतीय अभिनन्दन की आवश्यकता बहुत वर्षों से अनुभव की जा रही थी। इसी कमी की पूर्ति हेतु प्रबुद्धजनों ने निर्णय किया कि'डॉ. शेखरचन्द्र जैन के कर्मठ व्यक्तित्त्व-क्रियाशील जीवन और उपलब्धियों से भावी पीढ़ी को सुपरिचित कराने के उद्देश्य से उनका अखिल भारतीय स्तर पर अभिनन्दन भव्य समारोह पूर्वक 'स्मृतियों के वातायन से' अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करके समर्पण पूर्वक किया जावे'
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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