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________________ ब S tateko सुमेच्छा SE 557 } में प्रकाशित पत्रिका 'तीर्थंकर वाणी' के सफल निर्भीक सम्पादक हैं। पत्रिका के माध्यम से आप समाज एवं साधु संस्था सब मर्यादा में रहें ऐसा श्रम साध्य प्रयास कर रहे हैं। । मूल रूप से आप एक सफल शिक्षक हैं। अहमदाबाद और भावनगर के महाविद्यालयों में प्राध्यापक के रूप में । अपने विद्यार्थियों में अत्याधिक लोकप्रिय रहे हैं। प्रवचनों के लिये अनेकों बार विदेश यात्रा करने वाले आप, दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों समुदाय में लोकप्रिय हैं। आप सिद्ध हस्त लेखक हैं। हिन्दी-गुजराती भाषाओं में विभिन्न विषयों में आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। । आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि आशापुरा मां जैन अस्पताल की स्थापना है। पीड़ित मानवता की सेवा का आपने जो बीड़ा उठाया है, वह स्तुत्य कार्य है। कहते हैं कि जिस वृक्ष की जड़ में अमृत होता है, वह हमेशा फूलता-फलता है, इसी प्रकार आशापुरा मां जैन अस्पताल की बुनियाद में आपकी सुयोग्य सोच, अदम्य साहस और श्रम साध्य मेहनत का योगदान ने ही, उसे इतना अच्छा विशाल स्वरूप प्रदान किया है। अस्पताल के माध्यम से गरीबों का जो उपकार हो रहा है, वह शताब्दियों तक याद किया जावेगा, औषधि दान महादान माना गया है। __ मूल रूप से बुन्देलखण्ड वासी परिवार में जन्में डॉ. शेखरचंदजी ने बुन्देलखण्ड की सारी परम्पराओं को सहेज कर रखा है। ___ मैं, परिवार सहित आपके यशस्वी, दीर्घ जीवन की कामना करते हुए, आपका अभिनन्दन करता हूँ। चौ. रतनचंद जैन एवं परिवार (सागर, मध्यप्रदेश) or - पापाजी मेरी प्रेरणा ___ कहते हैं कि अंग्रेज अगर भारत में न आये होते तो भारत आज भी सभ्यता में पिछड़े होता। दुनिया अगर । शिस्त से रहना सीखी है तो अंग्रेजों से। मेरे परिवार का हाल भी कुछ ऐसा है। 99 प्रतिशत सगे-संबंधी एवं समाज के लोग कहते हैं कि पापा का स्वभाव खूब कड़क और गुस्से वाला है। अगर वे कड़क अनुशासन के हिमाईती न होते तो आज हमारा परिवार जिस मुकाम पर पहुँचा वहाँ न होता। हमारी ये प्रगति उनके अनुशासन से ही संभव हो पाई। हमारे बच्चे जो आज के जेट युग में पैदा हुए हैं उन्हें दादाजी का स्वभाव उनके नीति नियम कुछ ज्यादा ही कड़क लगते हैं। पर उनके प्यार के सामने वो सब भूल जाते हैं। आज हमारे जीवन में नियमितता, एकाग्रता, निर्णय शक्ति, कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति जैसे गुणों का विकास उन्हीं के । आभारी है। प्यार करने की सबकी अपनी अलग रीत होती है। कोई सिर पर हाथ फेरता है, कोई छाती से लगाता है, तो कोई मुख से प्रसन्नता व्यक्त करता है। ऐसा ही हमारे पापा के साथ है उनका प्यार हमेशा आँखो से प्रगट होता है। हमारी प्रशंसा हमारे सामने नहीं करेंगे, पर अपने मित्रों, संबंधी के सामने जरूर करेंगे। बच्चों के विकास के लिए पापाजी का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है 'अच्छा खिलाओ और खूब पढ़ाओ' स्वस्थ शरीर, उच्च शिक्षण होगा तो व्यक्ति जीवन में पीछे नहीं रहेगा। मुझे अच्छी तरह याद है कि बचपन में जब भी हम नये कपड़े सिलवाने की जिद करते थे तो पापा कोई न कोई बहाना करके टाल देते थे लेकिन पढ़ाई के लिए कोई भी पुस्तक चाहें कितनी भी मँहगी क्यों न हो उसे खरीद लाते थे। उनका एक सिद्धांत था हमेशा पुस्तक नई खरीदना ही और उसे कभी भी बेचना नहीं। पापा कभी ट्युशन नहीं करते थे उनका नियम था विद्या बेचूंगा कभी नहीं। जिसे भी पढ़ाते थे मुफ्त में पढ़ाते थे। more w
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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